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शुक्रवार, जनवरी 11

ज्ञान गंगा

यहाँ की ज्ञान-गंगा में समंदर डूब जाते हैं
ये भारत है यहाँ आकर सिकंदर टूट जाते हैं

मधुशाला को शब्दों में मिलाकर जो पिलायेँ तो,
हठीले जुल्म के हाथोँ से खंजर छूट जाते हैं

कला की साधना का दौर ब्रह्मानंद देता है
सुहाने श्वेत काले सारे मंज़र छूट जाते हैं

स्वदेशी स्टोर में फल देशी मुझ को बेचकर, देखो
नफा सारा विदेशी बन के बंदर लूट जाते हैं
कुमार अहमदाबादी

घुंघरूं


पवन को घुंघरूं पहनाता हूँ
जमाने तक कला पहुँचाता हूँ

गगन या रेत भूमि वारि मैं
व्यथा, हर मंच पर छलकाता हूँ

पवन, जल, आग मेरे दोस्त हैं
मजे से यारी मैं निभाता हूँ
कुमार अहमदाबादी

सोना जीवन साथी है

मित्रों,
हम सुनार हैं। सोना हमारा साथी है। आज स्वर्ण को केन्द्र में रखकर कुछ शेर पेश कर रहा हूँ। आप की कमेन्ट का इंतज़ार रहेगा।
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लालच
लालच मुज को मत दो प्यारे धन की तुम
सोनी हूँ मैं सोना जीवन साथी है
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कूट लो
स्वर्ण को तुम पीट लो चाहे कितना कूट लो
ये न बदलेगा कभी चाहे कितना खींच लो
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परीक्षा
राम को वनवास होता ईस जमाने में सदा
स्वर्ण की होती परीक्षा ईस जमाने में सदा
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सोना हूँ मैं
सोना हूँ ना भिन्न धातुओँ को मैं अपनाता हूँ
थोड़ा सा, पर उन के स्तर को उँचा मैं
उठाता हूँ
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देख ले
स्वर्ण से सत्कर्म का विश्वास कर के देख ले
साथ दूँगा, मुश्किलोँ में खास कर के, देख ले

भूख का आधार हूँ मैं तृप्ति का श्रृँगार हूँ
स्वर्ण से थोड़ी वफ़ा की आस कर के देख ले
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तपना पड़ेगा,
हेम हूँ तो क्या हुआ तपना पड़ेगा,
हार बनने के लिए गलना पड़ेगा.
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કસોટી
હું કસોટી પર જરા પરખાઈ જાઊં તો કહું
સ્વર્ણ છું સાબિત થવા ટીચાઈ જાઊં તો કહું
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कुमार अहमदाबादी । અભણ અમદાવાદી
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उदासी

सूर्य के मुख पे उदासी है
रोटी भूखी दाल प्यासी है

कोसे क्यों तू रात को प्यारे
रात तो यौवन की दासी है

ये कहाँ है वो कहाँ है माँ
माँ है तेरी वो न दासी है

यार कारण क्या क्यों भारत में
होते ना पैदा अगासी है

हाथी तो नीकल चुका है अब
पूँछ बाकी है जरा सी है
कुमार अहमदाबादी

अमावस्या की चाँदनी

रोशनी के बिना रोशनी हो गई
है अमावस्या पर चाँदनी हो गई
कुमार अहमदाबादी


 सोमरस
सोमरस गर पीना ही है तो पीयो शान से
साथ दो कहना ये प्रिया से या बुद्धिमान से
बेतहाशा पी के तुम जग में तमाशा ना बनो
कम पीयो छुपकर भी ताकि जी सको सम्मान से

खैयाम की रूबाई का शून्य पालनपुरी द्वारा किये गये अनुवाद का अनुवाद
कुमार अहमदाबादी


 पी गया
सूर्य को प्याले में घोलकर पी गया
रोशनी के नशे में जीवन जी गया
रोशनी को पचाना नहीं था सरल
कामयाबीयों को भूलकर जी गया
कुमार अहमदाबादी

संघर्ष 
 मेट्रो का संघर्ष रोटी के लिए नहीं
कार पीसी फोन, लक्जरी के लिए है
कुमार अहमदाबादी

अंतर
मैं उठता हूँ तब तुम सोते हो
यु ए से भारत में अंतर है
कुमार अहमदाबादी


सजावट
क्या क्या कुदरत ने आँचल में छुपाया है
कितनी खूबी से आँचल को सजाया है
कुमार अहमदाबादी


 दंभ
बात हिन्दुस्तान की करते हैं
जोधपुर नागौर में अटके हैँ
कुमार अहमदाबादी







घास हरी या नीली

*घास हरी या नीली* *लघुकथा* एक बार जंगल में बाघ और गधे के बीच बहस हो गई. बाघ कह रहा था घास हरी होती है. जब की गधा कह रहा था. घास नीली होती है...