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रविवार, मई 5

मुलाकातों की आशा(रुबाई)



मीठी व हंसी रातों की आशा है

रंगीन मधुर बातों की आशा है 

कुछ ख्वाब एसे हैं जिन्हें प्रीतम से

मदमस्त मुलाकातों की आशा है 

कुमार अहमदाबादी


 

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चल जल्दी चल (रुबाई)

  चल रे मन चल जल्दी तू मधुशाला  जाकर भर दे प्रेम से खाली प्याला मत तड़पा राह देखने वाली को  करती है इंतजार प्यासी बाला  कुमार अहमदाबादी