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रविवार, मार्च 26

कर्म कर(ग़ज़ल)


कर्म कर इंसान है तू कर्म कर
कर्म करने में कभी ना शर्म कर

फल मिलेगा क्या मिलेगा की नहीं
सोच मत ये तू सदा सत्कर्म कर

सोचकर तू कर रहा है पाप है
सोचकर तू ना कभी दुष्कर्म कर

उग्र मत हो मामला नाजुक है यार
गर्म सांसों को जरा सा नर्म कर

सार गीता का सरल व साफ है
जिंदगी में तू सदा सत्कर्म कर

आज तेरे शब्द सादे हैं ‘कुमार’
शब्द में पैदा जरा सा मर्म कर
कुमार अहमदाबादी

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