Translate

बुधवार, मार्च 22

मेरा भारत महान

 

मेरा भारत महान
अनुवादक – महेश सोनी
मूल लेखक – शैलेष सगपरिया साहेब
राजस्थान के नेथराणा गांव के जोगाराम बेनीवाल की बेटी मीरा की शादी हरियाणा के बागड़ गांव के महावीर के साथ हुये थे। शादी के बाद महावीर व मीरा के घर दो पुत्रियों का जन्म हुआ। उन का नाम मीनू और सोनू रखा गया। लेकिन परमात्मा ने मीरा की परीक्षा लेने की ठानी थी। मीरा के पति और श्वसुर दोनों स्वर्ग को सिधार गये। उस के बाद मीरा ने अकेले हाथों संघर्ष कर के बेटियों को पाला पोषा। दोनों शादी के लायक होने पर उन की शादी तय की।

बेटी के घर शादी का प्रसंग होता है। तब पीहर से भाई मामाभात(गुजराती में जिसे मामेरु कहते हैं) लेकर आया है। मामाभात का ये रिवाज ये परंपरा पूरे भारत में है। ज्यों ज्यों शादी का दिन नजदीक आता गया। मीरा के मन में उलझन बढती गयी। क्यों कि, मीरा के माता पिता का बहुत पहले अवसान हो चुका था। एकमात्र भाई संतलाल भी छोटी आयु में ही स्वर्ग सिधार चुका था।
प्रत्येक बहन की इच्छा होती है। उस के संतानों की शादी में पीहर वाले शामिल हो। जब की मीरा पीहर में कोई नहीं था। लेकिन मीरा बेटियों की शादी का निमंत्रण पत्र लेकर पीहर के गांव गयी। गांव में भाई की समाधी पर गयी। भाई की समाधी पर निमंत्रण पत्र रखा। मुख से भाई को एसे निमंत्रण दिया। जैसे वो सुन रहा है। भाई को विनती की कि वो मामाभात लेकर समय पर पहुंच जाये।

गांव के लोगों को जब ये मालूम हुआ तो वे बहुत भावुक हो गये। गांव वालों ने मिलकर सलाह मशविरा किया। उन्होंने सोचा। मीरा हमारे गांव की बेटी है। हमारी बेटी का कोई शुभ अवसर अधूरा नहीं रहना चाहिये। हम सब गांव वाले उस के भाई है। हम सब मिलकर मामाभात भरेंगे। जिस दिन मामाभात भरना था। उस दिन सारे गांव वाले अपने अपने वाहन लेकर मामाभात की विधि के लिये मीरा के गांव पहुंच गये।
उन्हें देखकर मीरा की ससुराल के गांव वालों की आंखें खुशी नाच उठी। लेकिन हर्षातिरेक से आंखें बरसने भी लगी।  गांव वालों ने सब को तिलक लगाकर स्वागत किया। मामाभात की विधि लगभग पांच घंटे चली। मीरा के पीहर वालों ने यथाशक्ति दस लाख का मामाभात भरा। वस्त्र आदि भी दिये।

ये तो मालूम था। नरसिंह मेहता की बेटी कुंवरबाई का मामाभात भरने के लिये पूर्ण पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण आये थे।
लेकिन इस आज के युग ने देखा कि एक बेटी को *गांव की बेटी* यूं ही नहीं कहा जाता।
हो सकता है। भारत के गांवों में लोग ज्यादा मात्रा में शिक्षित न हो। लेकिन संस्कारों के मामले में आज भी भारत के गांव वालों का कोई मुकाबला नहीं है। मुकाबला छोड़ो कोई आसपास भी नहीं है।
इसीलिये कहते हैं
मूल लेखक – शैलेष सगपरिया साहेब
मेरा भारत महान और इट्स हैपन्ड ऑन्ली इन इंडिया
अनुवादक – महेश सोनी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मुलाकातों की आशा(रुबाई)

मीठी व हंसी रातों की आशा है रंगीन मधुर बातों की आशा है  कुछ ख्वाब एसे हैं जिन्हें प्रीतम से मदमस्त मुलाकातों की आशा है  कुमार अहमदाबादी