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बुधवार, मार्च 22

झुका न सकेगी कमर को(गज़ल)

  


कभी भी झुका ना सकेगी कमर को
गरीबी झुका ना सकेगी नजर को

कहेंगे गरम सूर्य औ’ चंद्र शीतल
हराया है उस ने समय के सफर को

न जाने कहां से आयी है ये लेकिन
समय झूठ साबित करेगा खबर को

बहुत हो चुका मौन अब तोड़ना है
करेंगे खतम बोलीवुड के असर को

कहां तक गिरेंगे, हवस के कीड़े ने
सीमा पार खंडित किया है कबर को
कुमार अहमदाबादी

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मीठी वाणी क्यों?

  कहता हूं मैं भेद गहन खुल्ले आम  कड़वी वाणी करती है बद से बदनाम  जग में सब को मीठापन भाता है  मीठी वाणी से होते सारे काम  कुमार अहमदाबादी