फर्ज पर हाजिर नहीं नर्स चिंताग्रस्त युवा मेजर को अस्पताल के बिस्तर पर सोये दर्दों के पास ले गयी: और बहुत कोमल स्वर में बोली 'आप का पुत्र आया है'
कयी बार पुकारे जाने के बाद दर्दों ने आंख खोली।
दर्दी को हार्ट अटेक आया हुआ था, इसलिये दर्दशामक दवाइयां दी गयी थी। उन दवाईयों के नशे के कारण दर्दी ने दो चार बार पुकारने के बाद आंखें खोली। उसे सब कुछ धुंधला दिखायी दे रहा था। उसने देखा की आर्मी का मेजर अपनी पोशाक में खडा है। बहुत मुश्किल से उसने हाथ को बढाया।
मेजर ने बडे हुये हाथ को थामा। हाथों के स्पर्श से आपस में भावनाओं की स्पर्शगंगा बहने लगी।
इस ह्रदयस्पर्शी दृश्य को देखकर नर्स की आंखें भी भीग गयी। मेजर बैठकर बात कर सके इसलिये नर्स एक कुर्सी ले आयी। मेजर ने आभार व्यक्त किया और कुर्सी पर बैठ गया।
रात बीतने लगी। वार्ड में प्रकाश बहुत कम था। युवा मेजर दर्दों का हाथ थामे बातें करता रहा।
दर्द को हिंमत देता रहा।मेजर की बातों से अपनेपन, सहानुभूति, प्रेम की धारा बहती रही।
नर्स थोडी थोडी देर में वहां आकर युवा दोनों का ध्यान रखती रही। मेजर को थोडी देर आराम करने के लिये सलाह भी दी। लेकिन मेजर ने हर बार नम्रतापूर्वक इन्कार कर दिया। वर्दी के हाथ को थामे वहीं बैठा रहा।
रात की शांति को चीरकर आसपास के वातावरण से अन्य आवाजें आती रही। दर्दियों की सेवा करते करते बीच बीच के समय में एक दूसरे से बातचीत कर के समय व्यतीत कर रहे नाइट स्टाफ की आवाजें भी आती रहती थी।
लेकिन युवा मेजर को कुछ भी सुनायी नहीं देता था। नर्स देख रही थी कि मेजर दर्दों से बहुत ही प्यारी और मीठी बातें कर रहा है।
जब की मृत्यु शैया पर सोया दर्दी एक भी अक्षर नहीं बोल रहा था। उसने तो बस मेजर का हाथ कसकर पकड़ रखा था।
भोर हुयी और वृद्ध ने सदा के लिये आंखें बंद कर ली। वृद्ध की आत्मा अनंत के प्रवास पर रवाना हो गयी। मेजर ने धीरे से वृद्ध के हाथ से अपना हाथ खिंचा। वृद्ध के अनंत प्रवास के समाचार नर्स को दिये।
नर्स ने आकर शरीर से जुडे मेडिकल उपकरण हटाये। सफेद चादर द्वारा सन्मानपूर्वक देह को ढका।
मेजर थोडी दूर शिस्तबद्ध खडा रहा।
नर्स मेजर के पास गयी। सहानुभूति देने लगी। लेकिन मेजर ने नर्स को रोककर पूछा 'ये वृद्ध कौन थे?'
नर्स दो पल के लिये आश्चर्य के सागर में डूब गयी। उसने आश्चर्य से पूछा 'क्या! क्या ये आप के पिता नहीं थे?
मेजर ने कहा 'नहीं, ये मेरे पिता नहीं थे। मैं जीवन में आज पहली बार इन्हें मिला हूँ।
नर्स उलझ गयी। उसने फिर पूछा 'तो फिर जब मैं आप को वृद्ध के पास लायी तब आपने क्यों कुछ भी नहीं कहा।
मेजर ने जवाब दिया 'आप जिस पल मुजे वृद्ध के पास ले गयीं। उसी पल मैं समझ गया की कुछ भूल हो रही है। लेकिन मैं ये भी समझ गया की मृत्यु शैया पर सोये इस वृद्ध को अपने पुत्र की प्रतीक्षा है; और पुत्र यहां नहीं है।
नर्स नि:शब्द थी।
मेजर ने आगे कहा 'जब मैंने पाया की वे इतने होश में भी नहीं है की ये समझ सके की मैं उन का पुत्र नहीं हूँ। तब मुजे समझ में आया की उन्हें मेरी उपस्थिति की कितनी जरुरत है। इसलिये मैं बैठा रहा। उन का हाथ हाथों में लेकर बातें करता रहा। उन के आखिरी समय में पुत्रवियोग का अहसास नहीं होने देना चाहता था।
नर्स की आंखें भी भीग गयी थी। वो भीगी आंखों से बोली 'तो फिर आप .... यहां किस से मिलने के लिये आये थे?
मेजर बोला 'मैं यहाँ मिस्टर सलारिया से मिलने आया था। कल उन का पुत्र करण जम्मु कश्मीर में शहीद हो गया है। मुजे ये खबर उन्हें देनी थी।
नर्स अवाचक थी। दो पल के बाद वो बोली 'आप सारी रात जिन का हाथ पकड़कर बैठे बातें करते रहे। वही मेजर सलारिया थे।
सुनकर मेजर मौन हो गये।
(वॉट्स'प पर मिली गुजराती पोस्ट का हिन्दी भावानुवाद)
भावानुवादक- महेश सोनी
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