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सोमवार, अक्तूबर 14

मस्त हरा रंग सजा बाग में (ग़ज़ल)

 मस्त हरा रंग सजा बाग में 

एक नया फूल खिला बाग में 


फूल कली चांद एवं चांदनी

ने है किया प्रेम नशा बाग में 


साज नये शब्द नये भाव का

प्रेम भरा गीत सुना बाग में 


मौन दबी चीख घुटी वेदना

प्रेम से क्या क्या न मिला बाग में 


तान मिली ताल से मन जो मिले

गीत मधुर गूंज गया बाग में 


भूल गया शब्द बुरे और वो

आस लिये लौट गया बाग में 


टूट चुके नष्ट हुए स्वप्न का

बोझ उठाया न गया बाग में 

कुमार अहमदाबादी

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