*ग़ज़ल*
बहरे सरीअ
(गाललगा गाललगा गालगा)
प्रेम कभी झूठ नहीं बोलता
ना ही किसी का वो बुरा सोचता
शांत कुशल सौम्य एवं संयमी
शब्द बिना मौन से है बोलता
साथ की आदत है एसी पड़ गयी
पल भी अकेला वो नहीं छोड़ता
दूर ही रहता है विवादों से वो
फूट चुकी मटकी नहीं फोड़ता
यार सृजनशील है सपने में भी
खंडहरो को वो नहीं तोड़ता
कुमार अहमदाबादी
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