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शुक्रवार, अक्तूबर 4

ब्रह्मचारिणीः संयम सदाचारिता साधना

 

ब्रह्मचारिणीः संयम सदाचारिता साधना

मां ब्रह्मचारिणी का ध्यान मंत्र है
दधाना करपद्माभ्यामक्षमाला कमण्लु।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
ब्रह्म दो प्रकार से समझा जा सकता है।
(१) वेदशास्त्रों में जिसे परब्रह्म अर्थात सर्वोच्च निराकार परम ज्ञान की उपमा दी गयी है वो प्रचंड उर्जा।
(२) तपस्या सा साधना
ब्रह्मचारिणी अर्थात तपस्या में लीन रहने वाला या अपने अस्तित्व को निरंतर ब्रह्म में स्थिर रखने वाला। ब्रह्मचारिणी माता का स्वरुप पूर्ण ज्योतिर्मय और भव्य है। उन्होंने मंत्र जाप करने के लिये अपने दायें हाथ में अक्षमाळा और बायें कमंडल धारण किया है।
पूर्व जन्मों में हिमालय के घर में पुत्री स्वरुप में जन्म लेने के पश्चात उन्होंने देवर्षि नारद द्वारा दिये गये उपदेश के कारण देवाधिदेव महादेव को प्राप्त करने के लिये कठोर तप किया था। दुष्करतप करने के कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी के रुप में पहचान मिली।
पहले के समय में बच्चों को जन्म के कुछ समय बाद गुरुकुल में भेजा जाता था। जहां वे संयम और ब्रह्मचर्य के पाठ सीखते थे। साथ ही साथ विद्या और ज्ञान भी अर्जित करते थे। उस के लिये तब के नितांत आवश्यक माना जाता था।
ब्रह्मचारिणी माता सीखाती है कि संसार चक्र में रहकर भी उस से अलिप्त कैसे रहा जा सकता है। माता ये भी सीखाती है। माया रुप कीचड़ भरी फिसलन में रहकर भी कैसे ब्रह्मकमल की तरह खिला जा सकता है।
सुबह स्नानादि कर्म के पश्चात पूजाघर में अपने आसन पर बैठकर श्रद्धापूर्वक दीप के प्रकटाने के बाद ब्रह्मचारिणी माता के ध्यान मंत्र का उच्चारण करना चाहिए। मंत्रोच्चारण के बाद महादेवी को शक्कर अर्पण करनी चाहिये; एवं घर के सदस्यों में भी प्रसाद बांटना चाहिये। उस के बाद नीचे दिये आह्वान मंत्र से मां ब्रह्मचारिणी को प्रकट होने के लिये अरदास(प्रार्थना) करनी चाहिये।

मंत्र
ॐ भूर्भुवः स्वः ब्रह्मचारिणी इहागच्छ इहतिष्ठ ब्रह्माचारिण्यै नमः।
ब्रह्मचारिणीं आवाहयामि स्थापयामि नमः।।
पाद्यादिभिः पूजनम् विद्याय ॐ त्रिपुरा त्रिगुणधारा मार्गज्ञानस्वरुपिणीम्।
त्रैलोक्य वंदिता देवीं त्रिमूर्ति पूज्याम्यहम्।।
इतना करने के बाद निम्नलिखित नवार्ण मंत्र की माला फेर सकते हैं। महादेवी की साधना के लिये १०८ पंचमुखी रुद्राक्षधारी माला का उपयोग सर्वश्रेष्ठ माना गया है।

ॐ एं हृीं क्लीं चामुण्डाये विच्चे।।

यथाशक्ति अवसरानुकूल(अवसर के अनुकूल) नव वर्ण के इस अत्यंत प्रभावशाली मंत्र की १ माळा ३ माळा ५ माळा ५ माळा या १० माळा की जा सकती है। इस के लिये गुरुदीक्षा की आवश्यकता नहीं है। सूतक और मासिक धर्म के दौरान भी इस पूजा विधि के साथ नवरात्रि के दरम्यान जगदंबा की भक्ति की जा सकती है।
सूचना :-
नवरात्रि के तीसरे दिन जगत जननी जगदम्बा को दूध या दूध से निर्मित कोई व्यंजन (जैसे खीर) का भोग लगाया जाता है।
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गुजरात समाचार में चल रही नवदुर्गा श्रेणी में आज ता.०४-१०-२०२४ गुरुवार के दिन दूसरे पृष्ठ पर छपे लेख का आंशिक अनुवाद
लेखक -परख ओम भट्ट
अनुवादक - कुमार अहमदाबादी

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