Translate

रविवार, नवंबर 17

ज़िंदगी में फूल को जो भी सताएगा(ग़ज़ल)


ज़िंदगी में फूल को जो भी सताएगा

ज़िंदगी को वो जहन्नुम ही बनाएगा 


तू डराना चाहता है मौत को प्यारे 

ये बता तू मौत को कैसे डराएगा 


बावली सी हो गयी मैं जानकर ये की

आज बेटा शौक से खाना पकाएगा 


मानता हूं तू बहुत नाराज़ है लेकिन 

भाई के बिन जश्न तू कैसे मनाएगा


वो बहुत ही हंँसमुखा इंसान है यारों

मौत को हंँसकर गले से वो लगाएगा

कुमार अहमदाबादी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

बेमौसम बरसात (रुबाई)

जब जब होती है बेमौसम बरसात  शोले बन जाते हैं मीठे हालात  कहती है बरसात आओ तुम भीगो हौले हौले फिर भीगेंगे जज़बात  कुमार अहमदाबादी