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सोमवार, जुलाई 9

आग

जूठे सच्चे चेहरों को
आग लगा दो शहरों को

कैदी भावों को करती
आग लगा दो बहरोँ को

रीतें है या बेडियाँ
आग लगा दो पहरोँ को
कुमार अहमदाबादी

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चल जल्दी चल (रुबाई)

  चल रे मन चल जल्दी तू मधुशाला  जाकर भर दे प्रेम से खाली प्याला मत तड़पा राह देखने वाली को  करती है इंतजार प्यासी बाला  कुमार अहमदाबादी