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शुक्रवार, जुलाई 20

नाग हो तुम,

जानता हूँ मैं सनम ये नाग हो तुम
डंख मारे चोंच से वो काग हो तुम

खोखला दावा वफ़ा का है तुम्हारा
एक पल मैं बैठ जाता झाग हो तुम

घर हजारों खाक तुमने कर दिए हैं
रूप की तीली में सिमटी आग हो तुम

कोख को बरसात में भी भर सके ना
खिल सका ना जो कभी वो बाग़ हो तुम

चाँद का दर्जा दिया है तुमने मुज को
पाक दामन में लगा इक दाग हो तुम

जो गिराएं एक पल में लाख लाशें 
खून पीकर जो पला वो भाग हो तुम
 
गर सुनें तॊ झुंझलायें कोषिकाएं
लय से भटका बेसुरा एक राग हो तुम
  कुमार अहमदाबादी

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