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मंगलवार, अप्रैल 23

भारत की रचना


राजा महाराजाओं ने चूं की अंग्रेजों के आगे समर्पण किया था और अंग्रेज अब जाने वाले थे. सो, वे राजे महराजे समझे हम भी स्वतंत्र हो जाएंगे. उन की सोच टेक्निकली गलत भी नहीं थी. लेकिन युग बदल रहा था. राजाओं का युग अस्त हो रहा था. यहां सरदार पटेल ने राजाओं को साम दाम दंड भेद आदि से समझा बुझा कर भारत के एकीकरण के कार्य में अपने अपने राज्य सौंपने के लिए राजी किया. 

ये एकीकरण का कार्य सरल नहीं था. अखंड भारत से दो राष्ट्र बनने वाले थे. राजाओं के पास दो तीन विकल्प थे. एक भारत के साथ जुड़ें, दो पाकिस्तान के साथ जुड़ें, तीन पाकिस्तान के साथ जुड़ें. वर्तमान भारत की सीमा पर स्थित रजवाड़ों जोधपुर, अमरकोट, बीकानेर, जैसलमेर मेवाड़ को जिन्ना पाकिस्तान में मिलाना चाहता था. इस के लिए उस ने जी तोड़ कोशिश की. लेकिन एक अमरकोट के अलावा किसी को राजी नहीं कर सका. उस समय की एक रोचक घटना पढ़िए. 

भोपाल के नवाब को पाकिस्तान के साथ जुड़ना था. लेकिन भोपाल भावी पाकिस्तान की सरहद से दूर था. बीच में हिंदू रजवाड़े मेवाड़, जैसलमेर, जोधपुर आदि थे. भोपाल नवाब(सैफ अली खान के पूर्वज) ने सोचा मेवाड़ के राणा अगर तैयार हो जाए तो दूसरे भी हो जाएंगे. इस उद्देश्य को लेकर नवाब ने मेवाड़ के राणा भूपाल सिंह से मुलाकात की. लेकिन वो भूल गया था की मेवाड़ का राज परिवार वो राज घराना थे. जो पिछले लगभग एक हजार वर्षों से विदेशी आक्रांताओं से जूझ रहा था, लड़ रहा था. महाराणा कुम्भा, महाराजा सांगा, महाराणा प्रताप जैसे एक से बढ़कर एक मेवाड़ी शासकों से विदेशी मुस्लिम आक्रांताओं का डटकर मुकाबला किया था. लेकिन कभी उन के सामने समर्पण नहीं किया था.

भोपाल नवाब दूत को भेज कर गलती कर बैठा. महाराणा भूपाल सिंह आग बबूला हो गए. दूत जन राणा जी के दरबार से फौरन नौ दो ग्यारह हो गया. 

तो फिर मेवाड़ भारत में कैसे जुड़ा? 

रजवाड़ों को भारत में विलीन करने का मंत्रालय सरदार पटेल के पास था. सरदार पटेल ने भूपाल सिंह जी से मिलने की आज्ञा मांगी. राणा जी ने आज्ञा दी. सरदार पटेल राणा जी से मिलने के लिए गए. 

वो मुलाकात एसे हुई.

सरदार पटेल ने राणा जी के सामने उन के दरबार कर शिष्टाचार को पूरी तरह निभाते हुए प्रवेश किया. राणा जी अपने सिंहासन पर विराजमान थे. उन्होंने भी औपचारिक पारंपरिक रीत से स्वागत किया. थोडी देर औपचारिक बातें हुई. फिर राणा जी ने सरदार से आगमन का कारण पूछा. सरदार पटेल ने विनम्र लहजे में कहा *राणा जी, मैं आप को ससम्मान लेने आया हूं.  आप के वंश की आप के परिवार की सदियों की स्वतंत्रता प्राप्त करने की लड़ाई पूर्ण हुई है. अब आप दिल्ली चलिए और अपना राज्य संभालिए* 

क्या आप कल्पना कर सकते हैं. राणा जी की प्रतिक्रिया क्या हुई? 

शेषांश अगले लेख में

*कुमार अहमदाबादी*

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