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मंगलवार, अप्रैल 23

इंदिरा गांधी की नीतियां

जहां तक मुझे याद है. राजा महाराजाओं के पक्ष का नाम स्वतंत्र पार्टी था. उस में राजा महाराजाओं के अलावा और भी व्यस्क्ति थे. लेकिन राजा महाराजाओं के होने के कारण पार्टी की एक विशेष पहचान हैं गई थी. पार्टी दिन ब दिन लोकप्रिय हो रही थी. जयपुर की महारानी गायत्री देवी जैसा करिश्माई व्यक्तित्व प्रजा को आकर्षित करता था. दूसरी तरफ राजा महाराजाओं को सरकार की तरफ से पेंशन मिलती थी. ये पेंशन उन की उस जमीन, आवक आदि के बदले में थी. जो राजाओं ने स्वतंत्रता के समय भारत के एकीकरण के लिए छोड़ दिए थे. नहीं तो स्वतंत्रता के समय तकनीकी रुप से परिस्थिति क्या होती? राजा महाराजा और नवाबों ने अंग्रेजों का आधिपत्य स्वीकार किया हुआ था. 1757 के प्लासी के युद्ध के बाद 1857 की क्रांति तक पूरे भारतवर्ष के राजा अंग्रेजों को सर्वोपरी मान कर उन के प्रतिनिधि के रुप में राज करते थे. समय समय पर अंग्रेजों की फौजी मदद करते थे. (यहां एक पूरक जानकारी दे दूं. बीकानेर राज्य के पास 1900 सदी के पहले या दूसरे दशक में अपनी वायु सेना थी. उस वायु सेना ने पहले विश्व युद्ध में हिस्सा लिया था. उस वायुसेना के तीन विमानों को मैंने भी बीकानेर गढ़ के अंदर पड़ा हुआ देखा है.) दरअसल उस समय प्रकार की शासन व्यवस्था थी. पहली जहां राजा महाराजा अंग्रेजों की प्रतिनिधि के रुप में शासन करते थे. जैसे बीकानेर, जोधपुर, भोपाल, हैदराबाद, कश्मीर, जयपुर आदि आदि. दूसरी व्यवस्था में अंग्रेज खुद शासन करते थे. जैसे अहमदाबाद, मुंबई(तब बॉम्बे था), मद्रास(अब चेन्नई है) कोलकाता, वगैरह वगैरह. 

लेख जारी है……. अगला प्रकरण अवश्य पढ़िएगा.

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