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शुक्रवार, सितंबर 27

सनम मुझे मिलो कभी (ग़ज़ल)

सनम मुझे मिलो कभी

नदी बनो बहो कभी


अभी न जाओ छोड़कर 

सनम मुझे कहो कभी 


सनम के मौन प्यार की

पुकार तुम सुनो कभी 


कहे बिना सुने बिना 

झुके बिना झुको कभी 


बसे हो पत्थरों में तुम 

हृदय में भी बसो कभी


जुड़ो किसी से भी मगर 

स्वयं से भी जुड़ो कभी 


कभी कहो कुमार तुम 

नयी ग़ज़ल सुनो कभी 

कुमार अहमदाबादी

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