जब जब होती है बेमौसम बरसात
शोले बन जाते हैं मीठे हालात
कहती है बरसात आओ तुम भीगो
हौले हौले फिर भीगेंगे जज़बात
कुमार अहमदाबादी
साहित्य की अपनी एक अलग दुनिया होती है। जहां जीवन की खट्टी मीठी तीखी फीकी सारी भावनाओं को शब्दों में पिरोकर पेश किया जाता है। भावनाओं को सुंदर मनमोहक मन लुभावन शब्दों में पिरोकर पेश करने के लिये लेखक के पास कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। दूसरी तरफ रचना पढ़कर उस का रसास्वादन करने के लिये पाठक के पास भी कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। इसीलिये मैंने ब्लॉग का नाम कल्पना लोक रखा है।
जब जब होती है बेमौसम बरसात
शोले बन जाते हैं मीठे हालात
कहती है बरसात आओ तुम भीगो
हौले हौले फिर भीगेंगे जज़बात
कुमार अहमदाबादी
छंद और ताल का संबंध
अनुदित लेख
अनुवादक - महेश सोनी
गज़ल के छंद हों या अन्य कोई मात्रा मेळ छंद एवं दूसरे लयात्मक छंद ताल का अनुसरण करते हैं।
ताल का संबंध समय के साथ है। तय समयांतर पर पुनरावर्तित श्रवण गम्य घटना ताल की मूल विभावना है। आम आदमी की भाषा में कहें तो एसी घटना ताल की जन्मदात्री है; जननी है। इंसान के दिल की धड़कन तालबद्ध होती है। शरीर के भीतर बाहर दोनों सृष्टि में सबकुछ तालबद्ध है। वर्ष, ऋतु, महीने, प्रहर, घडी सबकुछ ताल के ही अंश है।
आप सब जानते होंगे। बच्चे में बोलना सीखने से समझने से पहले व रंगों को पहचानना सीखने से पहले ताल के प्रति आकर्षण होता है। दो महीने का बच्चा झूले में लटकाए हुए खिलौनो को लयबद्ध झूलते या हिलते डुलते देखकर आनंदित होता है। कभी कभी उस तालबद्व आवाज के साथ अपने हाथ पैर लयबद्ध रुप से चलाता है। उस लयबद्ध आवाज को सुनकर कभी किलकारियां भी करता है। आठ से दस बारह महीने का बच्चा उस ताल पर हाथ पैर भी चलाता है; तालियां भी बजाता है; कभी कभी विभिन्न तरह की मुख मुद्राएं भी बनाता है। मानवमात्र में ताल के प्रति कम या ज्यादा रुचि जन्म से ही होती है।
कुछ प्राणियों एवं पक्षियों के वाणी वर्तन एवं नर्तन देखकर कहा जा सकता है। परमात्मा ने उन्हें भी ताल की समझ दी है। कोयल की कूक और मोर का नृत्य इस सत्य का स्पष्ट प्रमाण है।
मानव संस्कृति के साथ विकास साथ ही इंसान में ताल की समझ विकसित होती गयी। इस विकास धारा में क्रमशः शब्द, स्वर, एवं भाव भंगिमाओं की समझ की अलग अलग धारा भी विकसित होती रही। सोने में सुहागा ये हुआ की विभिन्न कलाओं में आदान प्रदान होने से एक कला का दूसरी कला से सामंजस्य बैठने से कलाएं और समृद्ध, प्रभावशाली होती गयी।
संगीत मूलतः स्वरों का विषय है। स्वरों के आरोह अवरोह से संगीत का सृजन होता है। ताल संगीत के स्वरों को समय की डोर से बांधता है। संगीत को एक निश्चित गति प्रदान करने का रास्ता बताता है।
भारत में भाषा के कारण अक्सर विवाद हो जाते हैं। गुजरात के पाडोशी राज्य महाराष्ट्र में बरसों हुए अक्सर ये मुद्दा को सुलग जाता है।
भाषा को प्रायः प्रांत से जोडकर देखा जाता है। एक दो किस्से में धर्म के साथ भी जोड दिया गया है।
एसा इसलिए होता है। लोग भाषा को दृढता से बल्कि जडतापूर्वक पकड़ लेते हैं। ये मान लेते हैं। हमारी भाषा ही सब से अच्छी व सब से बढ़िया है। इतना ही नहीं दूसरी भाषा को अपनी भाषा से कम आंकने लगते हैं। अपनी भाषा को श्रेष्ठ समझना बिल्कुल ग़लत नहीं है। दूसरों की भाषा को कम आंकना या अच्छी ना समझना गलत है।
प्रत्येक भाषा का अपना गौरव अपना इतिहास होता है। प्रत्येक भाषा अपने आप में एक पूरी संस्कृति को सहेजकर रखती है। इंसान जब एक नयी भाषा सीखता है तो वो सिर्फ भाषा ही नहीं सीखता। नयी भाषा उस के सामने एक नयी संस्कृति के द्वार खोलती है।
एक अनुवादक इस सत्य को की एक भाषा ‘नयी संस्कृति के द्वार खोलती है’ बहुत अच्छी तरह समझता है। जो इंसान एक से ज्यादा भाषाएं जानता हो वो भी बहुत अच्छी तरह जानता है की भाषा कैसे उसे एक नयी संस्कृति से परिचित करवाती है। भाषा सांस्कृतिक विविधताओं से भी परिचित करवाती है।
यहां मै दो व्यक्तियों का उल्लेख करुंगा। जिन्होंने विदेशी होते हुए भी भारतीय भाषाओं से भरपूर प्रेम किया। पहले व्यक्ति हैं टैस्सी टोरी, जो राजस्थानी भाषा सीखने के लिये यूरोप से राजस्थान आये थे। दूसरे व्यक्ति हैं फादर वालेस। जो लगभग पोर्तुगल से अहमदाबाद आये थे। फादर वालेस ने लगभग ५० वर्ष अहमदाबाद को कर्मभूमि बनाए रखा। आज भी गुजराती भाषा के बडे और विख्यात लेखकों में फादर वालेस को माना जाता है। टैस्सी टोरी राजस्थानी भाषा और साहित्य के अध्ययन के लिए जाने जाते हैं। यह नाम "टैस्सीटोरी प्रज्ञा-सम्मान" जैसे पुरस्कारों से भी जुड़ा है, जो प्रवासी राजस्थानी प्रतिभाओं को उनकी संस्कृति और भाषा में योगदान के लिए दिए जाते हैं।
भाषा उस की होती है। जो उस का उपयोग करता है। उस से प्रेम करता है। लेकिन एक सत्य कभी भूलना नहीं चाहिए। ये कभी नहीं मानना चाहिये की मेरी भाषा ही सब से अच्छी है। जैसे प्रत्येक भोजन का अपना अलग अलग स्वाद होता है; वैसे ही प्रत्येक भाषा की अपनी मिठास, अपना इतिहास व अपना गौरव होता है। प्रत्येक भाषा अपने आप में एक संस्कृति समेटे होती है।
कुमार अहमदाबादी
न मानुं बात तो मुंह मत फुलाया कर
कभी तो बात मेरी मान जाया कर
कसम से मैं सदा तैयार रहती हूं
कभी साजन मुझे तू भी मनाया कर
नयी साड़ी दिला दूंगा मगर एसे
जरा सी बात में मुंह मत फुलाया कर
सनम दरखास्त है ये बेतहाशा तू
सताया कर मगर कह कर सताया कर
ये अंतिम मांग है सप्ताह में इक बार
मसालेदार खाना भी बनाया कर
शिकायत कर रही है क्यों ‘कुमार’ को अब
कहा था सब्र को मत आजमाया कर
कुमार अहमदाबादी
कितना मदमस्त है सुहाना मौसम
मनमोहक गीत गा रही है शबनम
हम दोनों इस मौसम में खो जाएं
औ’ गाएं प्रेम की सुरीली सरगम
शबनम - ओस, तुषार, सुबह सुबह फूलों पर लगा हुआ पानी
कुमार अहमदाबादी
शाम है जाम है और क्या चाहिये
नाम है काम है और क्या चाहिये
जिंदगी चल रही है खुशी से ‘कुमार’
नाम के दाम है और क्या चाहिये
कुमार अहमदाबादी
પ્રવાસી રહ્યો છું સદા કાળથી હું, ધરા પર સતત આવ જા કરી છે
સદીઓ થી મારી ખબર છે દિશાને યુગો થી મને કાફલા ઓળખે છે
'અભણ' છું છતાં શબ્દનો સાથી છું શારદાએ કૃપા દૃષ્ટિ અઢળક કરી છે
અલંકાર કર્તા વિશેષણ ક્રિયાપદ ગઝલ જોડણી કાફિયા મને ઓળખે છે
અભણ થી વધારે નથી શૂન્યની પાસે કોઈ અનોખો છે સંબંધ અમારો
આ સંબંધ ની વાસ્તવિકતા ને આકાશ ધરતી ની આબોહવા ઓળખે છે
ખબર છે સતત તારા સંબંધીઓ સાથે મેં ઓળખાણ વધારી છે માટે
મને તારી આ માંગ સિંદૂર સદીના ગોટા અને આભલા ઓળખે છે
અભણ અમદાવાદી
अनुवादक - महेश सोनी
विश्व स्वास्थ्य संगठन की ये रिपोर्ट चौंकाने वाली है। दुनिया में प्रत्येक छट्ठा व्यक्ति अकेला है। दुनिया में करोड़ों लोग टूटे रिश्तों और संवादों के कारण अकेले अकेले संपूर्ण मौन का जीवन जी रहे हैं। ये मौन वाणी का नहीं है बल्कि भावनाओं का मौन है। भावनाओं का आदान प्रदान में शून्यावकाश छा गया है। व्यक्ति के भीतर का शून्यावकाश उसे निगल रहा है। जिस की आंखों और पंखों में नवयौवन का जोश उमंग होने चाहिए। वो नौजवान पीढ़ी इस समस्या का सब से ज्यादा शिकार हो रही है। जीवन जटिल हो रहा है। आगे अनेक चुनौतीयां है। विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी के विस्तार के साथ साथ दो पीढीयों में दूरियां बढ़ी है। भौतिकवादी विचारों के कारण आकांक्षाएं आसमान को छूने लगी है। परंतु वास्तविकता के साथ संतुलन न होने के कारण हताशा व उदासी बढ़ रही है। एक फूल व कली एवं पेड़ पौधों के प्रित नहीं हो रही। एसे में कला, साहित्य या संगीत की क्या ही बात करनी।
इस समस्या को बढ़ाने में मोबाइल का योगदान बहुत ज्यादा है। चमक दमक से छलकती दुनिया और उस का आकर्षण सुलभ नहीं है। लेकिन सब को लुभा रहा है। उस के कारण लोग निराशा व हताशा के शिकार हो रहे हैं। रानू मंडल व कच्चा बादाम के क़िस्से याद कर लीजिए। कहा जाता है सोशियल है मिडिया क्रांतिकारी ढंग से फैल रहा है। लेकिन वास्तविकता अलग है। व्यक्ति के सोशियल मिडिया पर हजारों मित्र हो सकते हैं। लेकिन वास्तविक जीवन में वह व्यक्ति अकेला होता है। इस सच को साबित करने वाले अनेक किस्से हैं। ये सांप्रत सत्य है। वर्चुअल मित्रों के कृत्रिम मैसेज व्यवहार हमारे जीवन की समस्याओं का समाधान नहीं कर सकते। कृत्रिम रिश्ते वास्तविक रिश्तों की बुनावट को मजबूत नही कर सकते। कृत्रिम संबंधों में वास्तविक रिश्तों जैसी मजबूती नहीं होती। आज लोगों के मन में ये मान्यता गहरे तक बैठ चुकी है कि जिस के पास पैसे हैं। वो कुछ भी कर सकता है। जब की एसा नहीं है। इस सत्य को तीन उदाहरण से समझ सकते हैं। सुनील गावस्कर, अमिताभ बच्चन एवं सचिन तेंदुलकर तीनों अपने पुत्रों को सफलता नहीं दिला सके। तीनों अपने पुत्रों को सफलता नहीं दिला सके। ये सच नहीं है। जिस के पास पैसा है। वो सबकुछ कर सकता है।
पहले परिवार के बुजुर्ग संकट के समय सदस्यों को संभाल लेते थे। वे एक परिस्थितियों के अनुसार मार्गदर्शन करते थे। सारे सदस्य साथ मिलकर संकट से लड़ते थे। जिस परिवार में पति पत्नि दोनों नौकरी करते हैं। वहां परिस्थितियां और ज्यादा विकट है। उन के बच्चे हॉस्टल में रहते थे। घर पर रहते हों तो भी ज्यादातर समय अकेले ही रहते हैं। कई घरों में माता पिता व बच्चे सिर्फ शनि रवि या छुट्टीयों के दिन ही बातचीत कर सकते हैं। ये परिस्थितियां धीरे धीरे अकेलेपन और डिप्रेशन की ओर ले जाती है।
ये समस्या धीरे धीरे मानसिक बीमारी का रुप ले लेती है। लेकिन लोग मानसिक समस्या को समस्या नहीं मानते। इस का उपचार नहीं करवाते; करवाते भी हैं तो बहुत मुश्किल से। विश्व में प्रत्येक छह में से एक व्यक्ति अकेलेपन से जूझ रहा है। अकेलापन हर वर्ष अंदाजन आठ लाख जिंदगीयों को निगल रहा है। सच कहें तो ये अधूरी समझ और बौद्धिक इमरजेंसी के चिन्ह है। जिन्हें मूर्खता से दूर होना या रहना नहीं आता। वो एसी भूल बार बार करते हैं। युरोप व अमेरिका में इस भूल के करने वालों की संख्या निरंतर बढ रही है। जो बताता है। व्यक्ति मात्र समाज और उस की आफिस के वातावरण से अलग नहीं है। परंतु परिवार से भी अलग है। कुछ उद्योगपतियों ने कुछ समय पहले आफिसों के कार्यकाल बढाने का आग्रह किया था। एक उद्योगपति ने ये कहा कि क्या कर पर रहकर पत्नी का चेहरा देखना ज्यादा जरुरी है? ये बयान ये सोच एक असंवेदनशील व्यक्ति ही रख सकता है। काम के दबाव के कारण युवा पीढ़ी पहले ही की समस्याओं से जूझ रही है। नयी पीढ़ी के मन में पहले ही काफी गुस्सा अधूरी महत्वाकांक्षाओं की पीडा अनचाही परिस्थितियों व संजोगों के कारण है। एसी स्थिति में सिर्फ और सिर्फ सामाजिक जुड़ाव आपसी बातचीत व तालमेल और संवेदनशीलता ही इस समस्या को दूर कर सकते हैं।
कुल मिलाकर परिवार एवं समाज से जुड़ाव बहुत जरुरी है।
ये ता.28-07-2025 के दिन गुजरात समाचार में छट्ठे पन्ने पर छपे तंत्री लेख का अनुवाद है
ये जमीं जिस कदर सजाई गई
जिंदगी की तड़प बढ़ाई गई
साहिर लुधियानवी
साहिर लुधियानवी को बागी शायर कहा जाता है। ये शेर साबित करता है की गलत नहीं कहा है। साहिर ने हिन्दी फिल्मों के लिये अनेक यादगार गीत लिखे हैं। ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है,औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाजार दिया जैसे गीत उन के मिजाज को लेखनी की धार को अच्छी तरह व्यक्त करते हैं।
उस शेर में भी शायर ने बताया है। उन के विद्रोही मिजाज की धार कितनी तीखी है।
साहिर कहते हैं। आज तक मानव ने जिस तरह से विकास किया है। जो विकास किया है। उसने जीवन को मुश्किल बनाया है। मानव ने विकास के नाम पर भौतिक सुविधाओं में वृद्धि की है। हुआ ये है की मानव ने जिन भौतिक सुख सुविधाओं में बढ़ोतरी की है। उस बढ़ोतरी ने मानव के जीवन को दुविधाएं, शारीरिक व मानसिक समस्याएं पैदा की है। दस मानवों का काम जब एक यंत्र करने लगा तो स्वाभाविक है; नौ मानव बेकार हो गये। इसी बेकारी फिर दूसरी समस्याएं पैदा की है। बेकार आदमी को भी अपना और परिवार का पेट तो भरना है। सही रास्ते से रोजगार ना मिलने पर बेकार इंसान गैरकानूनी, अनैतिक रास्ता अपनाने पर मजबूर हो जाएगा। आपने अपने आसपास के सामाजिक वातावरण में एसे इंसान अवश्य देखे होंगे। जो काम करना चाहते हैं। लेकिन उन्हें काम नहीं मिल रहा है; और काम क्यों नहीं मिल रहा है? क्यों कि एक यंत्र दस बीस इंसानों का काम कर रहा है।
ये सच है। जीवन जितना सरल होगा। जीवन में संघर्ष जितना कम होगा। अन्य समस्याएं उतनी ही ज्यादा होगी।
यांत्रिक विकास की नकारात्मक असरों को देखना हो तो; आजकल के बच्चों के शरीर को देख लीजिए। आप को १० में से ३ से ४ बच्चे अन्य बच्चों से मोटे दिख जाएंगे। बच्चों में बढ़ रहे मोटापे के मूल में यांत्रिक विकास है। आजकल बच्चे खेल के मैदान में कितना समय बिताते हैं? बहुत ही कम समय बिताते हैं। ज्यादातर बच्चे शिक्षा के कार्य में व्यस्त रहते हैं। उस से फुरसद मिले तो मोबाइल या कम्प्यूटर गेम लेकर बैठ जाते हैं।
इसी वजह से समाज में चश्मा पहनने वाले व्यक्तियों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ रही है।
इंसान ने भौतिक सुख सुविधाओं को विकास का मापदंड मान लिया है। घर में फ्रीज, एयरकंडीशन एवं अन्य आधुनिक उपकरणों का होना विकास का पैमाना माना जाता है। लोग लोन लेकर भी आधुनिक उपकरण बसाते हैं। लोन का चक्कर एक बार शुरु होने के बाद रुकने का नाम नहीं लेता। अब तो परिस्थितियां इतनी बिगड चुकी है। लोन की भरपाई ना कर सकने के कारण पूरे के पूरे परिवार द्वारा सामूहिक आत्महत्या करने की घटनाएं भी घट चुकी है।
ता.11-03-2012 रविवार के दिन गुजराती अखबार जयहिंद में मेरी कॉलम ‘अर्ज करते हैं’ में छपे लेख का
भावानुवाद
ये असल है वो नहीं
ये नकल है वो नहीं
घास वो गेहूं है ये
ये फ़सल है वो नहीं
आदमी दोनों हैं पर
ये सरल है वो नहीं
फर्क दोनों में है क्या
ये तरल है वो नहीं
फूल हैं दोनों “कुमार”
ये कमल है वो नहीं
कुमार अहमदाबादी
रातभर ख़्वाब आप के आए
साथ मीठास प्रेम की लाए
नींद से प्यार क्यों न हो प्रीतम
स्वप्न में तुम हो इस कदर छाए
कोशिशें छोड़ दो लुभाने की
ये कलम वो नहीं जो बिक जाए
है ख़तरनाक भीड़ से ज्यादा
पागलों की इस भीड़ के साए
जानवर जाग जाए भीतर का
ज़ुल्म इतना भी न कोई ढाए
कुमार अहमदाबादी
बारहा तू मत सता ए ज़िन्दगी
चंद फूलों से मिला ए ज़िन्दगी
क्यों हमेशा लू बनी रहती है तू
बन कभी ठंडी हवा ए ज़िन्दगी
आंख बोली लग रही हो आज तुम
मस्त सावन की घटा ए ज़िन्दगी
ज़िन्दगी से त्रस्त इक बीमार की
तू ही है उत्तम दवा ए ज़िन्दगी
थक गया हूं खोज कर अब तू बता
कामयाबी का पता ए ज़िन्दगी
देर मत कर आ लिपट जा प्रेम से
प्रेम को बनकर लता ए ज़िन्दगी
कुमार अहमदाबादी
करती है तन मन से मेरा आदर
रखती है मेरी पूरी खोज ख़बर
हर पल मुझ पर न्यौछावर रहती है
ओढ़ाती है नींद में भी वो चादर
कुमार अहमदाबादी
जब तेरी तस्वीर उभर आती है
इक पल में तन्हाई निखर जाती है
सारे फूलों की खुशबू दो पल में
भीतर के मौसम में उतर जाती है
कुमार अहमदाबादी
तन मन में प्यार की घटा छाई है
कुछ मीठा सोचकर ही शरमाई है
मन करता है झूमो प्यारे सजनी
हौले से मंद मंद मुस्काई है
कुमार अहमदाबादी
हमें मालूम है कैसे सजाते हैं पत्थरों को
ये भी मालूम है कैसे भुनाते हैं अवसरों को
कभी सिर मत उठाना भारतीयों के सामने तुम
हमेशा हम झुकाते हैं घमंडी उन्नत सरों को
हमारे शस्त्र औ’ रणनीति दुनिया के सामने है
बचाना जानते हैं दुश्मनों से खेतों व घरों को
(उड़ाना जानते हैं दुश्मनों के खेतों व घरों को)
हमारे शेर थे खामोश काफी लंबे समय तक
मगर बेदर्द होकर अब कुचलते हैं विषधरों को
जगत के तात का एहसान कर के स्वीकार लाखों
करोडों बार मैं सेल्यूट करता हूं हलधरों को
कुमार अहमदाबादी
है स्वागत के लिये तैयार मयखाना
बुलाता है मुझे दिलदार मयखाना
कभी घर तोड़ देता है कभी दिल औ’
चलाता है कभी सरकार मयखाना
ख़ुशी ग़म बेबसी आंसू ये कहते हैं
है खासम खास सब का यार मयखाना
ये वो इस उस में कोई भेद नहीं करता
लुटाता है हमेशा प्यार मयखाना
आते है लोग वापस लौट जाते हैं
सुनो कहता है जीवन सार मयखाना
कुमार अहमदाबादी
दिल में जलती है चिताएं
तेज है सूखी हवाएं
पूछती है भूख तुम से
क्यों नहीं सुनता सदाएं
राज क्या है आज कल क्यों
मुस्कुराती है घटाएं
आखिरी अवसर है प्रीतम
देख लो क़ातिल अदाएं
इंट दो तुम दो रखूं मैं
घर नया मिलकर बनाएं
पूछते हैं सब मगर हम
हाल किस किस को सुनाएं
मस्त होकर प्रेम से हम
एक दूजे को सताएं
कुमार अहमदाबादी
छेड़ मत लाचार को
काच से किरदार को
मुस्कुराकर प्रेम से
दे दवा बीमार को
त्याग कहकर भाग मत
छोड़ मत परिवार को
सात फेरे ले लिये
अब सजा संसार को
मत बुला आफ़त को तू
छेड़ कर सरकार को
मत झिझक तू रास्ता
पूछ ले दो चार को
लालची बनकर ‘कुमार’
मत गिरा किरदार को
कुमार अहमदाबादी
11 सितंबर का दिन मेरे लिए ऐतिहासिक था। मेरे ननिहाल परिवार द्वारा एन्टिक आयोजन किया गया था। मेरे नानाजी के पिताजी श्री हजारीमलजी करीब एक सौ दो या तीन साल बसने के लिए सुप्रसिद्ध देशनोक गाँव छोड़कर बिकानेर आये थे। इस उपलक्ष्य में पारिवारिक भोज आयोजित किया गया था। हजारीजी के बारे में कुछ लिखूँ। उस से पहले देशनोक के बारे में थोड़ी सी जानकारी दे दूँ।
देशनोक करणी माता के मंदिर व उस में रहनेवाले चूहोँ के लिए विख्यात है। करणी माता को बिकानेर के राज परिवार की कुलदेवी माना जाता है। मंदिर ऐतहासिक है। मंदिर में ईतने चूहे हैं कि आप पैर उठाकर चल नहीं सकते। पैर को जमीँ से सटाकर चलना पड़ता है। एसी मान्यता है कि अगर कोई चूहा पैर से कुचला जाए तो आप को सोने या चाँदी का चूहा बनवाकर मंदिर को भेंट करना पड़ता है।
हजारी जी के कुछ पारिवारिक सदस्य बिकानेर में रहते थे। करीब एक सौ दो या तीन साल पहले देशनोक से हजारीमल जी बिकानेर आ गये। हजारी जी के पिता का नाम नारायणदास जी बी दादाजी का नाम करणीदान जी था। हजारी जी अत्यंत कर्मठ व्यक्ति थे। बहुत जल्द बिकानेर के ब्राह्मण स्वर्णकार समाज में खुद को स्थापित कर लिया। विशिष्ट पहचान कायम कर ली। वे बेहद उच्च स्तर का घड़ाई कार्य (जिस में रेण द्वारा सोने को घाट दिया जाता है। जैसे कि फूल पान बनाना)करते थे। कुशल वैध भी थे। उन्हें नाडी विज्ञान का गहरा ज्ञान था। मगर उन्होंने कभी वैधकीय ज्ञान को धनार्जन का साधन कभी नहीं बनाया।
एक बार देशनोक के एक शख्स भँवरलाल की तबियत बेहद खराब थी। परिस्थिति ये थी कि उन्हें धरती ले लिया (गाँवो में बचने की उम्मीद न हो तो धरती पर सुला दिया जाता है। जो मिट्टी में मिट्टी मिलनेवाली है ये दर्शाता है) गया था। हजारी जी को बिकानेर से बुलाया गया। वे उँट सवारी कर के करीब पौने घंटे में पहुँचे। वहाँ रोना धोना मचा था। सब से पहले नब्ज देखी। नब्ज देखकर रोना धोना बंद करवाया। एक कागज पर दवाइयों के नाम लिखकर जिम्मेदार व्यक्ति को दिया। जो बाजार से लानी थी। उस जमाने में उन दवाईयों के दाम कुल मिलाकर दो आने जितने थे। जो कोई ज्यादा नहीं थे। दवाई लाई गई। दवाइयों को कूट पीसकर एक एक घूंट दर्दी को देने लगे। कुछ घंटो बाद दवाई का असर नजर आने लगा। दूसरे दिन दर्दी ने आँख खोली। मरीज की माँ ने अपने गहने लाकर हजारी जी के सामने रख दिए। उन्होँ ने कुछ भी लेने से ईन्कार कर दिया।
एक और घटना
हजारी जी के दो काकाओं रामसंग जी व रामदास जी में बोलचाल नहीं थी। रामसंग जी उम्र दराज थे। बीमार थे। हजारी जी काका से मिलने गए। नब्ज देखी। देखकर पूछा "कोई आखरी ईच्छा" काका ने कहा "आखरी घड़ीयों में रामदास से मिल लेता तो...पर वो देशनोक में है" हजारी जी ने उठते हुए बोले "मैं लेकर आता हूँ।" काका ने कहा "अरे अभी दस साढ़े दस बज रहे हैँ कहाँ जाएगा।" हजारी जी बोले "यूँ गया यूँ आया" घर गए उँट निकाला। पौने घंटे के अंदर अंदर देशनोक पहुँच गए। काका रामदास से कहा "चलिए आप को लेने आया हूँ। काका रामसंग आप से मिलना चाहते हैं" सुनकर काका ने कहा "अरे मेरी उस की बोलचाल बंद है फिर भी तू..." हजारी जी ने काका की बात काटकर उन्हेँ कम से कम शब्दों में वास्तविकता बताई। काका मान गए। काका को लेकर रवाना होने से पहले काकी को सूचना दे दी। आप सब भी बैल गाड़ियाँ जोड़ कर जल्दी बिकानेर पहुँच जाईये। फिर करीब पौने घंटे में बिकानेर पहुँच गए। दोनों भाई सारे मतभेद भूलाकर गले मिल कर खूब रोए। घंटे सवा घंटे बातें की। गिले शिकवे दूर हुए। सुबह चार बजे के आसपास रामसंग जी ने देह त्याग दिया।
हजारी जी के संतानें कई हुई पर पांच पुत्रोँ व दो पुत्रियों ने लंबी उम्र पाई। उस जमाने में मृत्यु दर ज्यादा था। हर तरह से सशक्त बच्चा ही लंबी आयु प्राप्त करता था। हजारी जी के 35 या 36 पौत्र पौत्रियों ने लंबी उम्र पाई। जिन में 18 पौत्र व 17 या 18 पौत्रियाँ थे। करीब करीब 30 पौत्र पौत्रियाँ कम उम्र में ही गुजर गए। आज हजारी जी के परिवार में सब मिलाकर हजार से ज्यादा व्यक्ति हैं। ग्यारह तारीख के कार्यक्रम में अंदाजन 900 व्यक्ति शामिल हुए थे। बिकानेर से बाहर रहनेवाले कुछ सदस्य निजी कारणवश शामिल नहीं हो सके। बिकानेर में रहनेवाले सारे सदस्य कार्यक्रम में शामिल हुए थे। एक परिवार बाकी परिवारों से तीस साल से कटा हुआ था। वो भी ईस आयोजन में खुशी खुशी शामिल हुआ। एक एक व्यक्ति उत्साह से भरा था। सब कुछ आयोजनबद्ध था। बड़ी कुशलता से न्यौते दिए गए। जिम्मेदारीयों को बाँट दिया गया। प्रत्येक परिवार के मुखिया को ये जिम्मेदारी सौंपी गई कि उस के परिवार में कोई बाकी न रहे। ये ध्यान रखना उस का कर्तव्य है। उस के प्रत्येक परिवारजन को न्यौता पहुँचाना व आयोजन स्थल तक लाना उस का कार्य है। प्रत्येक मुखिया ने क्रमबद्ध अपने परिवार की छट्ठी या सातवीं पीढ़ी तक न्यौता पहुँचाया। खाद्य सामग्री लाने का काम विभिन्न व्यक्तियों को सौंपा गया। काम के विभाजन से सबकुछ आसान होता चला गया।
कार्यक्रम में प्रवेश द्वार के सामने दो तस्वीरेँ रखी गई थी। एक हजारी जी की थी। दूसरी में हजारी जी के साथ उन के पाँचों पुत्र दो पौत्र व हजारी जी के चचेरे भाई रेखो जी थे। दोनों तस्वीरेँ कोई सौ या पिचानवे साल पुरानी होगी। मैंने गौर किया था कि आनेवाला हर शख्स जब तसवीरों के सामने आया। तब आँखों में एक अलग ही आत्मियता थी। एक अनोखा लगाव एक विशेष कशिश थी। जिन्हें नहीं पता था वे जानना चाहते था कि वो हजारी जी की सातों संतानोँ में से किस का वंशज है?
मेरा एक दोस्त जो पहले अहमदाबाद में रहता था। पिछले दस सालों से बिकानेर में रहता है। वो मुझे कार्यक्रम में मिला। उस ने मुझ से पूछा "तुम यहाँ कैसे?" मैंने कहा " हजारी जी के तीसरे पुत्र मेघराज जी मेरे नाना जी हैं" फिर मैंने पूछा "तुम्हारा सेतु ईस परिवार से कैसे जुडता है?" उस ने बताया "छगनीदेवी मेरी सासुमाँ की दादी जी थीं।" आप के मन में प्रश्न उभरा होगा ये छगनीदेवी कौन होँगी? छगनीदेवी हजारी जी की सब से छोटी पुत्री का नाम था।
ईस आयोजन का महत्व तब और बढ़ जाता है। जब हमें ये पता चलता है कि हजारी जी तथा उन की सातों संतान एवं पांचो बहुएँ व दोनों जंवाई सब स्वर्गवासी हो चुके हैं। 18 पौत्रोँ मे से 8 स्वर्गवासी हो चुके हैं। एक तीस पैंतीस या शायद चालीस सालों से लापता है। दस पौत्रियाँ व एक दोहित्री कार्यक्रम में शामिल थीं। सिर्फ एक व्यक्ति मेरी मौसी जी को हजारी जी याद है। जब हजारी जी गुजरे मौसी जी की उम्र आठ दस साल की थी एवं आयोजन के लिए सब को प्रेरित करनेवाले मेरे मामाजी तीन साल के थे।
आज के दौर में जब पारिवारिक ऐक्य लगातार कम हो रहा है। तब एसा आयोजन बहुत महत्त्व रखता है। सात पीढ़ी छोडो लोगों को दूसरी तीसरी पीढ़ी के रिश्तेदारों के नाम याद नहीं होते। इस भगीरथ आयोजन को सफल बनाने के कार्य करनवाला हर शख्स अभिनन्दन का पात्र है। परिवार के सब से बड़े व्यक्ति की इच्छा 'एक बार मेरे दादाजी के परिवार को साथ खाना खाते देख लूँ' का सम्मान कर उसे साकार रूप देनेवाला प्रत्येक शख्स अभिनन्दन का पात्र है। इस कार्य को साकार रूप देनेवाले समस्त परिवारजनों को मैं बधाई देता हूँ। उन्होंने मुझे और पुरे परिवार को पारिवारिक गौरव के ऐसे अनमोल क्षण प्रदान किये हैं। यादों के इतिहास में ऐसे सुनहरी पन्ने जोड़े हैं जिन का कोई मुकाबला नहीं।
आखिर में पुरे परिवार को उन की भावनाओं को सलाम करते हुए शब्दों को विराम दे रहा हूँ।
महेश सोनी
એક બહુ જૂની રચના.. જુની એટલે કે 2016ની સાલની રચના.. યાદ એટલા માટે આવી કે બહુ ટૂંક સમયમાં હવે આની સિઝન આવી રહી છે. ચોમાસાની સિઝનનું એક માત્ર વિઝન આજે પણ ગામડામાં વરસતા વરસાદમાં બનતા ભજીયા હોય છે. તો માણો
सप्तरंगी दिल्लगी अच्छी लगी
आज थोड़ी मयकशी अच्छी लगी
घुल गयी जो पूर्णिमा की रात को
खीर में वो चांदनी अच्छी लगी
रात थर थर कांपने के बाद ये
धूप थोड़ी गुनगुनी अच्छी लगी
एक लंबे युद्ध से थकने के बाद
दुश्मनी से दोस्ती अच्छी लगी
षोडशी के चेहरे पर फूल सी
स्निग्ध भावुक कमसिनी अच्छी लगी
कुमार अहमदाबादी
साथी सब से अच्छा है ये प्याला
मैं हूं तन्हा तन्हा है ये प्याला
साथी हैं हम एसे मैं प्याले में
एवं मुझ में बसता है ये प्याला
कुमार अहमदाबादी
यौवन तेरा हरा भरा है मधुवन
फैलाता है सुगंध जैसे चंदन
मादक ऋतु में बौराई मृग नैनी
के नवयौवन को करता हूं वंदन
कुमार अहमदाबादी
तुम्हारे चेहरे पर तो शराफ़त है
मगर दिल में सनम खूनी अदावत है
न मिलती है तू ना ही करती है इन्कार
गज़ब की फूल सी कोमल शरारत है
मिलन के बाद होठों ने कहा उफ़ उफ़
नरम नाज़ुक लबों में क्या नफासत है
तू मिलती है मुझे पर जानता हूं मैं
तुम्हारे मन में हल्की सी बगावत है
करम करते समय ये याद रखना तू
उपर सब से बड़ी वाली अदालत है
अदाएं जान ले लेती हैं इक पल में
है कातिल पर अदाओं में नज़ाकत है
कुमार अहमदाबादी
प्रेम सब से खूबसूरत पीर है
पूर्णिमा ही चंद्र की तकदीर है
प्रेम पंथ के यात्रियों की सूचि में
जॉन गोपीचंद और बलबीर है
चांद को ब्रह्मोस ने समझा दिया
स्वर्ग है ये हिंद का कश्मीर है
थे कबूतर हाथ में कल तक मगर
आज घातक नाग जैसा तीर है
सोफिया ने ये बताया है उसे
हिंद की प्रत्येक नारी वीर है
शक्ति ही है शांति की माता ‘कुमार’
शक्तिशाली का जगत में नीर है
कुमार अहमदाबादी
इस की उस की बातें
चलती रहती बातें
ले ले कर चटखारे
जनता करती बातें
कब क्या क्यों कैसे में
अक्सर उलझी बातें
अफवाहों की साथी
बनकर बहती बातें
करते सब हँस हँस कर
सच्ची झूठी बातें
मेरे शब्दों में है
सब के मन की बातें
कुमार अहमदाबादी
મસાણ-ગોષ્ઠી
રામ બોલો ભાઈ રામ પોકારતું ડાઘુઓનું ટોળું સ્મશાનમાં દાખલ થયું. ટોળાને જોઈ ત્યાં હાજર છગન છટકેલો, રાજુ રખડેલો અને ભમી ભૂલકણો ટોળા પાસે પહોંચ્યા. રાજુએ ડાઘુઓના આગેવાન શિવભાઈ અને મૃતકનાં પરિવારજનોને માહિતી આપી કે તમે જણાવેલી વ્યવસ્થા થઇ ગઈ છે. પણ સ્મશાનમાં 'વેઈટીંગ' છે. ચાર ઠાઠડીઓ ઓલરેડી રાહ જોઈ રહી છે! બધી ચિતા-સ્ટેન્ડો 'ફૂલ' છે. આપણો નંબર પાંચમો છે. રાહ જોવા સિવાય કોઈ વિકલ્પ ન હોવાથી ઠાઠડીને એક ઠેકાણે વ્યવસ્થિત મુક્યા પછી ડાઘુઓ જ્યાં જગ્યા મળી ત્યાં ગોઠવાવા માંડ્યા.છગન રાજુ અને ભમી પણ એક ખૂણે જઈને બેઠા અને વાતોએ વળગ્યા.
ભમી વાત શરુ કરતા બોલ્યો "તમને નથી લાગતું આજે જયારે સર્વત્ર વિકાસનો પવન ફૂંકાઈ રહ્યો છે. સરકારે સ્મશાનોને પણ વિકસિત કરવા જોઈએ. મોટા અને અધતન બનાવવા જોઈએ"
ભમીની વાત સાંભળી રાજુએ આમતેમ નજર ફેરવી. એને તૂટેલા બાંકડા, નળ,જર્જર છાપરું, ટોઇલેટનો તૂટેલો દરવાજો દેખાયા. બધા પર એક નજર નાંખી એણે વાતમાં સુર પુરાવતા કહ્યું "હા...હોં..... આજે જયારે ઓવરબ્રિજ, હાઈરાઈજ ટાવર, વિશાલ પહોળા રસ્તા, કૌભાંડો,મંત્રી-મંડળો બધું જ જયારે મોટા પાયે થઇ રહ્યું છે ત્યારે સ્મશાન નાનાં અને અવિકસિત કેમ?"
ભમીની વાત સાંભળી રાજુની જેમ છટકેલાએ પણ નજર ફેરવી હતી. એની નજર 'ઈલેક્ટ્રીક ભઠ્ઠી બંધ છે' લખેલા બોર્ડ પર પડી હતી. રાજુ પછી એ પણ ચર્ચામાં કુદ્યો." અરે યાર છે એ સગવડ ચાલુ રહે તોય બહુ છે. જો કે આમ જોવા જઈએ તો તમારી વાત સાચી છે. આજે 'મરવા માટેની સગવડો' વધી રહી છે. ત્યારે બળવા માટેની સગવડો ય વધવી જોઈએ ને!
ભમીએ પુછ્યું "મરવા માટેની સગવડો?"
છગન બોલ્યો "લે ખૂના-મરકી, કોમીહુલ્લ્ડો, હત્યાઓ, રોડ અકસ્માતો, હીટ એન રન, આતંકવાદી હુમલા, બોમ્બ વિસ્ફોટો, મિલાવટી ખાદ્ય પદાર્થો, વગેરેના કારણે મૃત્યુ આંક વધી રહ્યો છે. આ બધી મરવા માટેની જ સગવડો છેને! મૃત્યુઆંક ઝડપથી વધી રહ્યો છે ત્યારે સ્મશાનમાં અગ્નિ-સંસ્કાર જલ્દી થાય થાય એવી વ્યવસ્થા કરવી જોઈએ કે નહિ? અહીં તો છે એ વ્યવસ્થા પણ કામ નથી કરતી."
રાજુ બોલ્યો "એક સાથે વધારે મૃતદેહોના અગ્નિસંસ્કાર થઇ શકે માટે સરકારે નક્કર પગલાં ભરવા જોઈએ. આસપાસની જમીન સંપાદિત કરી સ્મશાનને વિશાળ અને આધુનિક બનાવવા જોઈએ. ચિતા-સ્ટેન્ડોની સંખ્યા વધારવી જોઈએ. જેથી મૃતદેહોએ બળવા માટે રાહ ના જોવી પડે....
છટકેલો દર્દ સભર અવાજમાં બોલ્યો "અરેરેરે... માણસે જીવનભર રાશન, નોકરી, રેલ્વે કે બસ ટીકીટ, દીકરા-દીકરીના એડમિશન માટે લાઈનમાં ઉભા રહ્યાં પછી બળવા માટે ય લાઈનમાં લાગવાનું? અરેરેરે કેવો જમાનો આવ્યો છે! કેવી ભયંકર પરિસ્થિતિ છે."
ભૂલકણો ડાધુઓની સમસ્યા પર પ્રકાશ પાડતાં બોલ્યો " જરા ડાઘુઓનો વિચાર કરો. ઘેરથી નીકળ્યા ત્યારે હતું કે, બે કલાકમાં ફ્રી થઇ જઈશુ. પણ હવે ચાર કલાક પહેલા ફ્રી નહિ થવાય.જો વધારે ચિતા-સ્ટેન્ડ હોત તો ડાઘુઓનો અનમોલ સમય ના બગડત. આતો આપણા સમાજનાં લોકો રોકાય છે બાકી ઘણા સમાજનાં લોકો આપણી જેમ છેક સુધી નથી રોકાતા"
છટકેલાએ એ પુછ્યું "આપણે કેમ રોકાઇયે છીએ?"
રખડેલાએ ખુલાસો કર્યો "ચિતા કે મૃતદેહ સાથે ચેડાં ના થાય માટે અને મૃતકના પરિવારજનો એકલવાયા ના થઇ જાય માટે"
ભૂલકણો બોલ્યો " અને આજ કારણોસર કથિત આધુનિક વિચારોવાળા લોકો આપણને રૂઢીચુસ્ત માને છે."
છટકેલો ભૂલકણાના સમર્થનમાં વ્યંગભર્યા અંદાજમાં બોલ્યો " આધુનિક લોકો આપણી જેમ સમયનો બગાડ નથી કરતા. તેઓ પ્રાઈવેસીને વધારે મહત્વ આપે છે. ચિતા સળગ્યા પછી એ લોકો મૃતદેહને બળવા માટેની અને પરિવારજનોને 'જોવા' માટેની પ્રાઈવેસી આપવા માટે રવાના થઇ જાય છે."
રખડેલો વાતને પાછી વિકાસના હાઇવે પર લાવવાના ઈરાદે બોલ્યો " રશનાં કારણે અત્યારે કેટલા બધા લોકો ઉભા કે ગમે ત્યાં બેઠા છે. સરકારે કમ સે કમ બાંકડાઓની સંખ્યા તો વધારવી જ જોઈએ. અહીં વૃક્ષો પણ વાવવા જોઈએ. જેથી સ્મશાન 'હરિયાળું' બને."
છટકેલો બોલ્યો "અરે હું તો કહું છું લત્તે લત્તે સ્મશાન બનવા જોઈએ. દરેક એરિયામાં જો કરિયાણાની દુકાન, હોસ્પિટલ, મેડીકલ સ્ટોર, દવાખાનું, આઈસક્રીમ પાર્લર, ટ્યુશન ક્લાસ અને ઓટો ગેરેજ હોઈ શકે તો સ્મશાન કેમ નહીં?
છટકેલાની વાત પૂરી થઇ ત્યાં શિવભાઈની બુમ સંભળાઇ "એ ચાલો,આપણો નંબર લાગી ગયો." બુમ સંભાળી ત્રણે ઉભા થઇ રવાના થયાં.
રવાના થતાં થતાં છટકેલો બબડ્યો " આમે'ય આ દુનિયા એક મોટું સ્મશાન જ બની ગઈ છે ને. જ્યાં રો........જ લાખો લોકો ઈર્ષ્યા, સ્પર્ધા, હુંસાતુંસી, દ્વેષ અને સ્ટ્રેસની ચિતામાં બળી રહ્યા છે."
તા.૨/૧૧/૧૨ ના રોજ દૈનિક 'જયહિન્દ'માં છપાયેલી મારી કટાક્ષિકા
जब जब होती है बेमौसम बरसात शोले बन जाते हैं मीठे हालात कहती है बरसात आओ तुम भीगो हौले हौले फिर भीगेंगे जज़बात कुमार अहमदाबादी