साहित्य की अपनी एक अलग दुनिया होती है। जहां जीवन की खट्टी मीठी तीखी फीकी सारी भावनाओं को शब्दों में पिरोकर पेश किया जाता है। भावनाओं को सुंदर मनमोहक मन लुभावन शब्दों में पिरोकर पेश करने के लिये लेखक के पास कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। दूसरी तरफ रचना पढ़कर उस का रसास्वादन करने के लिये पाठक के पास भी कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। इसीलिये मैंने ब्लॉग का नाम कल्पना लोक रखा है।
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शुक्रवार, फ़रवरी 14
दैवी ताकत(रुबाई)
बुधवार, फ़रवरी 12
पायल की मस्ती (रुबाई)
रविवार, फ़रवरी 9
कान्हा की छेड़छाड़ (रुबाई)
मनमोहक छेड़छाड़ की नटखट ने
माखन की मटकी फोडी नटखट ने
रोका मैंने पर ना माना कान्हा
चुनरी माखन से रंग दी नटखट ने
कुमार अहमदाबादी
औजार भी थकते हैं
આજે હું મારો ધાતુ સાથેનો એક અનુભવ શેયર કરું છું. અમારા જડતર જ્વેલરી કામમાં વપરાતા એક સાધનનું નામ છે 'સળાઈ'. સળાઈ સોનામાં કોતરણીકામ માટે વપરાય છે. એકવાર એવું થયું કે મેં સળંગ ત્રણ દિવસ એક જ સળાઈ વાપરી. એ સળાઈ મારી ફેવરેટ પણ હતી. માખણમાં ચાકુ જેટલી સરળતાથી ચાલે એટલી સરળતાથી સળાઈ કાર્ય કરી રહી હતી. પણ ચોથા દિવસે એ નખરા કરવા મંડી. અચકાઈ અચકાઈને વર્ક કરતી. થોડીવાર પછી કંટાળીને મેં બીજી સળાઈ લઈ લીધી. કામ પતાવ્યુ. ફેવરેટ હોવાના કારણે અઠવાડિયા પછી ફરી પાછી એ જ સળાઈ હાથમાં લીધી. પાછી એ પહેલાની જેમ જ માખણમાં ચાકુ ચાલે એટલી સરળતાથી કામ કરવા માંડી. ત્યારે મને ખ્યાલ આવ્યો. તે સળાઈ સળંગ ત્રણ દિવસ કામ કરવાના કારણે થાકી ગઈ હતી. એટલે નખરા કરતી'તી. સળાઈ કેવી હોય એના માટે બીજી એક સળાઈનો ફોટો પણ મુકુ છું.
*सळाई का अनुभव*
कुमार अहमदाबादी
7 फरवरी 2017 के दिन फेसबुक में एक अनुभव लिखा था; जो गुजराती में लिखा था। आज उस का हिन्दी अनुवाद यहां पेश कर रहा हूं।
जडतर ज्वैलरी का निर्माण करने के लिये जो औजार चाहिए। उन में से एक औजार का नाम सळाई है। सळाई से कुंदन में छीलाई, नक्काशी(कटाई) की जाती है।
एक और बात बता दूं। निर्माण कला के प्रत्येक कलाकार के कुछ औजार एसे होते हैं। जो उसे पसंदीदा होते हैं।
एक बार यूं हुआ कि मुझे लगातार तीन चार दिन तक सिर्फ छिलाई का कार्य करना पडा था। जो की मैंने एक ही सळाई से किया था। पहले तीन दिन तक एक ही सळाई का उपयोग किया था। वो सळाई मेरी पसंदीदा थी। वो इतनी सरलता से चलती थी। जैसे माखन में चाकु चलता है।
लेकिन चौथे दिन वो नखरे करने लगी। सरलता से नहीं बल्कि अटक अटक कर चलने लगी। लिहाजा काम करने के गति बाध्य होने लगी। थक हार कर थोड़ी देर बाद मैंने दूसरी सळाई ली और उस से काम किया।
पांच छह दिन बाद सुबह कर्मासन पर बैठा। उस दिन भी छिलाई काम करना था। त्याये( जिस टेबल पर जडतर किया जाता है उस वर्किंग टेबल को त्याया कहा जाता है) का ड्रॉअर खोला। ड्रॉअर खोलते ही वही पसंदीदा सळाई दिखी। फौरन वो सळाई निकाली। उसे तैयार किया; तैयार कर के छिलाई काम शुरु किया। वो सळाई पहले की ही तरह कार्य करने लगी। कुंदन में यूं चलने लगी। जैसे गांव का परिचित व्यक्ति अपने गांव की गलियों में चलता है।
उस पल मेरे मन ने कहा। जिस दिन ये नहीं चली थी। उस दिन ये शायद लगातार तीन चार दिन चलकर थक गयी होगी। इसीलिए नखरे करने लगी थी।
इस पोस्ट के साथ अन्य एक सळाई का फोटो पोस्ट कर रहा हूं।
बच्चा लोरी सुनकर क्यों सो जाता है
बच्चे को सुलाने के लिये गाई जाने वाली लोरी के पीछे जो मनोविज्ञान काम करता है। वो न सिर्फ बहुत गहरा है बल्कि माता और पुत्र के रिश्ते की मजबूती को भी व्यक्त करता है।
बच्चा जब गर्भ के रुप में कोख में होता है। तब पूर्णतया मां से जुडा होता है। अन्य एक महत्वपूर्ण तथ्य ये कि कोख हृदय से ज्यादा दूर नहीं होती। गर्भावस्था में बच्चा मां के हृदय की धडकन एकदम स्पष्ट रुप से सुनता है। धडकन चूं कि तालबद्ध (विज्ञान कहता है। सामान्य रुप से हृदय ७१ से ७२ धड़कता है) होती है। कई बार वो बच्चे के लिये शब्द बिना की लोरी का काम करती है।
गर्भावस्था में इस परिस्थिति से गुजरे हुए बच्चे को सुलाने के लिये जब मां लोरी गाती है तो बच्चा को लोरी के शब्द को नहीं समझता। लेकिन लोरी की लय से परिचित होता है। लय को समझता है।
बाकी का काम मां के स्वर का अपनापन व उस की मधुरता पूरी कर देते हैं। उस मधुरता में खो हुए बच्चे को धीरे धीरे नींद आ जाती है।
कुमार अहमदाबादी
मंगलवार, फ़रवरी 4
लोरी की आवाज़
सर्वोत्तम मीठी औ’ प्यारी आवाज़
ममता में डूबी संस्कारी आवाज़
भर देती है तन मन में नवजीवन
माँ की पीयूषी लोरी की आवाज़
कुमार अहमदाबादी
बुधवार, जनवरी 15
कलम के सिपाही
कलम के सिपाही हम है, दुश्मन की तबाही हम हैं।
पी.एम. के भाई हम है, परबत व राइ हम हैं ।.... कलम के
सत्य की शहनाई और जूठ की रुसवाई हम हैं।
शब्द की सच्चाई और अर्थ की गहराई हम हैं..... कलम के
चिंतक का चिंतन और दर्शन का मंथन हम हैं।
धर्मों का संगम और एकता का बंधन हम हैं ... कलम के
विचार की रवानी और घटना की जुबानी हम हैं।
जीवन की जवानी और जोश की कहानी हम हैं...कलम के
रचना की खुद्दारी और भाषा के मदारी हम हैं।
प्याले की खुमारी और हार-जीत करारी हम हैं....कलम के
पेट की लाचारी और मानसिक बीमारी हम हैं।
ममता एक कंवारी और जिम्मेदार फरारी हम हैं....कलम के
रूप के शिकारी और वीणा के पुजारी हम हैं।
दुल्हे की दुलारी और मीरा के मुरारी हम हैं....कलम के
प्रेम की पुरवाई और जानम की जुदाई हम हैं।
तन्हाई में महफ़िल व महफ़िल की तरुणाई हम हैं.... कलम के
सपनों के रचैता और अर्थ हीन फजीता हम हैं।
भावों की सरिता और 'कुमार' की कविता हम हैं... कलम के
[ये कविता तब लिखी गई थी जब बाजपाईजी पी.एम. थे]
[आज पी.एम. नरेन्द्र मोदी है]
कुमार अहमदाबादी
दैवी ताकत(रुबाई)
जन्मो जन्मों की अभिलाषा हो तुम सतरंगी जीवन की आशा हो तुम थोडा पाती हो ज्यादा देती हो दैवी ताकत की परिभाषा हो तुम कुमार अहमदाबादी

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मैं समाज की वाडी हूं। आज मेरी खुशी का ठिकाना नहीं है या फिर यूं कहें कि आज मैं खुशी से फूली नहीं समा रही हूं; और खुशी से झूम रही हूं। बताती ...
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*दिल जो पखेरु होता पिंजरे में मैं रख लेता* *सिने मैजिक* भाग -०१ *ता.०३-१२-२०१० के दिन गुजरात समाचार में लेखक अजित पोपट द्वारा लिखित* *सिने म...
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*काम कामिनी का दास है* श्री भर्तहरी विरचित श्रंगार शतक के श्लोक का भावार्थ पोस्ट लेखक - कुमार अहमदाबादी नूनमाज्ञाकरस्तस्या: सुभ्रुवो मकरध्...