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शुक्रवार, फ़रवरी 14

दैवी ताकत(रुबाई)


 जन्मो जन्मों की अभिलाषा हो तुम
सतरंगी जीवन की आशा हो तुम 
थोडा पाती हो ज्यादा देती हो
दैवी ताकत की परिभाषा हो तुम 
कुमार अहमदाबादी 

बुधवार, फ़रवरी 12

पायल की मस्ती (रुबाई)


मस्ती से पायल बोली सुन साजन
इठला कर बोली चूड़ी सुन साजन
बिंदी काजल टीका भी बोल पडे
रस बिन शामें हैं सूनी सुन साजन
कुमार अहमदाबादी

रविवार, फ़रवरी 9

कान्हा की छेड़छाड़ (रुबाई)


मनमोहक छेड़छाड़ की नटखट ने 
माखन की मटकी फोडी नटखट ने
रोका मैंने पर ना माना कान्हा 
चुनरी माखन से रंग दी नटखट ने 
कुमार अहमदाबादी

औजार भी थकते हैं

 આજે હું મારો ધાતુ સાથેનો એક અનુભવ શેયર કરું છું. અમારા જડતર જ્વેલરી કામમાં વપરાતા એક સાધનનું નામ છે 'સળાઈ'. સળાઈ સોનામાં કોતરણીકામ માટે વપરાય છે. એકવાર એવું થયું કે મેં સળંગ ત્રણ દિવસ એક જ સળાઈ વાપરી. એ સળાઈ મારી ફેવરેટ પણ હતી. માખણમાં ચાકુ જેટલી સરળતાથી ચાલે એટલી સરળતાથી સળાઈ કાર્ય કરી રહી હતી. પણ ચોથા દિવસે એ નખરા કરવા મંડી. અચકાઈ અચકાઈને વર્ક કરતી. થોડીવાર પછી કંટાળીને મેં બીજી સળાઈ લઈ લીધી. કામ પતાવ્યુ. ફેવરેટ હોવાના કારણે અઠવાડિયા પછી ફરી પાછી એ જ સળાઈ હાથમાં લીધી. પાછી એ પહેલાની જેમ જ માખણમાં ચાકુ ચાલે એટલી સરળતાથી કામ કરવા માંડી. ત્યારે મને ખ્યાલ આવ્યો. તે સળાઈ સળંગ ત્રણ દિવસ કામ કરવાના કારણે થાકી ગઈ હતી. એટલે નખરા કરતી'તી. સળાઈ કેવી હોય એના માટે બીજી એક સળાઈનો ફોટો પણ મુકુ છું.


*सळाई का अनुभव*

कुमार अहमदाबादी 

7 फरवरी 2017 के दिन फेसबुक में एक अनुभव लिखा था; जो गुजराती में लिखा था। आज उस का हिन्दी अनुवाद यहां पेश कर रहा हूं। 

जडतर ज्वैलरी का निर्माण करने के लिये जो औजार चाहिए। उन में से एक औजार का नाम सळाई है। सळाई से कुंदन में छीलाई, नक्काशी(कटाई) की जाती है। 

एक और बात बता दूं। निर्माण कला के प्रत्येक कलाकार के कुछ औजार एसे होते हैं। जो उसे पसंदीदा होते हैं। 

एक बार यूं हुआ कि मुझे लगातार तीन चार दिन तक सिर्फ छिलाई का कार्य करना पडा था। जो की मैंने एक ही सळाई से किया था। पहले तीन दिन तक एक ही सळाई का उपयोग किया था। वो सळाई मेरी पसंदीदा थी। वो इतनी सरलता से चलती थी। जैसे माखन में चाकु चलता है। 

लेकिन चौथे दिन वो नखरे करने लगी। सरलता से नहीं बल्कि अटक अटक कर चलने लगी। लिहाजा काम करने के गति बाध्य होने लगी। थक हार कर थोड़ी देर बाद मैंने दूसरी सळाई ली और उस से काम किया।

पांच छह दिन बाद सुबह कर्मासन पर बैठा। उस दिन भी छिलाई काम करना था। त्याये( जिस टेबल पर जडतर किया जाता है उस वर्किंग टेबल को त्याया कहा जाता है) का ड्रॉअर खोला। ड्रॉअर खोलते ही वही पसंदीदा सळाई दिखी। फौरन वो सळाई निकाली। उसे तैयार किया; तैयार कर के छिलाई काम शुरु किया। वो सळाई पहले की ही तरह कार्य करने लगी। कुंदन में यूं चलने लगी। जैसे गांव का परिचित व्यक्ति अपने गांव की गलियों में चलता है। 

उस पल मेरे मन ने कहा। जिस दिन ये नहीं चली थी। उस दिन ये शायद लगातार तीन चार दिन चलकर थक गयी होगी। इसीलिए नखरे करने लगी थी। 

इस पोस्ट के साथ अन्य एक सळाई का फोटो पोस्ट कर रहा हूं। 

बच्चा लोरी सुनकर क्यों सो जाता है


 बच्चे को सुलाने के लिये गाई जाने वाली लोरी के पीछे जो मनोविज्ञान काम करता है। वो न सिर्फ बहुत गहरा है बल्कि माता और पुत्र के रिश्ते की मजबूती को भी व्यक्त करता है। 

बच्चा जब गर्भ के रुप में कोख में होता है। तब पूर्णतया मां से जुडा होता है। अन्य एक महत्वपूर्ण तथ्य ये कि कोख हृदय से ज्यादा दूर नहीं होती। गर्भावस्था में बच्चा मां के हृदय की धडकन एकदम स्पष्ट रुप से सुनता है। धडकन चूं कि तालबद्ध (विज्ञान कहता है। सामान्य रुप से हृदय ७१ से ७२ धड़कता है) होती है। कई बार वो बच्चे के लिये शब्द बिना की लोरी का काम करती है। 

गर्भावस्था में इस परिस्थिति से गुजरे हुए बच्चे को सुलाने के लिये जब मां लोरी गाती है तो बच्चा को लोरी के शब्द को नहीं समझता। लेकिन लोरी की लय से परिचित होता है। लय को समझता है। 

बाकी का काम मां के स्वर का अपनापन व उस की मधुरता पूरी कर देते हैं। उस मधुरता में खो हुए बच्चे को धीरे धीरे नींद आ जाती है।

कुमार अहमदाबादी 

मंगलवार, फ़रवरी 4

लोरी की आवाज़


सर्वोत्तम मीठी औ’ प्यारी आवाज़ 

ममता में डूबी संस्कारी आवाज़ 

भर देती है तन मन में नवजीवन 

माँ की पीयूषी लोरी की आवाज़

कुमार अहमदाबादी 

दैवी ताकत(रुबाई)

  जन्मो जन्मों की अभिलाषा हो तुम सतरंगी जीवन की आशा हो तुम  थोडा पाती हो ज्यादा देती हो दैवी ताकत की परिभाषा हो तुम  कुमार अहमदाबादी