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गुरुवार, नवंबर 21

जब मिला था कली से(ग़ज़ल)


भ्रमर बाग में जब मिला था कली से

मिला था निराली मधुर जिंदगी से


सही और प्यारी सलाह दे रहा हूं

हुनर सीख चलने का चलती घडी से


कभी मैं कभी तू कभी ये कभी वो

मिलेंगे कसम से नयी रोशनी से 


जरा गौर कर तू वहां देख प्यारे 

खड़ा है सफल आदमी सादगी से


अगर मन में विश्वास श्रद्धा न होंगे 

मिलेगा न कुछ भी तुझे बंदगी से 

कुमार अहमदाबादी

सोमवार, नवंबर 18

अहमदाबाद का मिल उद्योग: एक संस्मरण

 *स्वतंत्रता से पहले अहमदाबाद में कपडे की ८० मिलें थीं*

(अनुवादित व संकलित)

*अनुवादक व संकलक - कुमार अहमदाबादी*

अहमदाबाद के मिल उद्योग के पितामह माने जानेवाले रणछोड लाल छोटालाल ने अहमदाबाद ने सूती कपडे की पहली मिल शुरु की थी। उन के साहस ने नगर के कई सेठों को मिल उद्योग ने आकर्षित किया था। रणछोड़ लाल छोटालाल ने १८६१ में एक लाख की पूंजी लगाकर पहली मिल आरंभ की थी। १८७७ में दूसरी मिल आरंभ की। 

इस के फलस्वरूप पहले ३६ वर्ष में अहमदाबाद में ९,  अगले दस वर्ष में १८, अगले पच्चीस वर्ष में २३, अगले १० वर्ष में १९ मिलाकर कुल ८०(अस्सी) मिलें शहर में शुरु हुई थी। कपड़े की मांग बढ़ने के कारण ये सारी मिलें चौबीस घंटे चलती थी। ये मिलें ८-८ घंटे की तीन शिफ्ट में काम करती थी; अर्थात हर ८ घंटे बाद मजदूर बदलते थे। 

मिल उद्योग के कारण ही अहमदाबाद को भारत का मान्चेस्टर कहा जाता था। आप सोचते होंगे। मान्चेस्टर क्यों कहा जाता था? मांचेस्टर इंग्लैंड का शहर है। वो अपने मिल उद्योग के कारण विख्यात एवं समृद्ध था। जब मिल उद्योग अपने चरम पर था। तब मांचेस्टर में ९९(निन्यानवे) मिलें काम करती थी। 


अहमदाबाद में पहली मिल १८५७ की क्रांति के तीन वर्ष बाद आरंभ हो गयी थी। हालांकि रणछोड़लाल छोटालाल का प्रथम प्रयास विफल हुआ था। लेकिन रणछोड़लाल ने हिंमत नहीं हारी; दुबारा प्रयास किया। इस बार वे सफल हुए। ३० मई १८६१ के दिन अहमदाबाद के शाहपुर विस्तार में सूती कपडे की पहली मिल आरंभ हुई। शाहपुर विस्तार में जहां ये मिल थी। वो आज भी शाहपुर मिल कम्पाउन्ड नाम से जाना जाता है। हालांकि अब तो वहां सोसायटी, फ्लैट, दुकानें बन गयी है। लेकिन नाम आज भी शाहपुर मिल कंपाउंड है। जैसे नटराज थियेटर टूटे एक दो दशक हो गये हैं। लेकिन उस के पास जो ए.एम.टी.स.(अहमदाबाद म्युनिसिपल टांसपोर्ट सर्विस) का बस स्टेन्ड है। उस का नाम आज भी नटराज सिनेमा या जुनु नटराज सिनेमा है। 

वापस मिलों पर लौटते हैं। 

स्वतंत्रता से पहले अहमदाबाद में अस्सी (८०) मिलें चलती थीं। मिलों की एक व्यवस्था थी। जब मजदूरों की आठ(८) घंटे की शिफ्ट पूरी होती थी। तब शिफ्ट पूरी होने का सिग्नल मिल की सीटी बजाकर दिया जाता था। वो सीटी बहुत तेज यानि तीव्र आवाज में बजती थी। उस समय अहमदाबाद के रोजमर्रा के जीवन में मिल की उस सीटी का कितना महत्व था। इसे आप अविनाश व्यास द्वारा लिखित गीत *हुं अमदावाद नो रिक्षावाळो* की इस पंक्ति *ज्यां पहेला मिल नुं भूंगळु(भूंगळु यानि सीटी) पछी बोलतो कूकडो( मुरगी को गुजराती में कूकडो कहते हैं)* से लगा सकते हैं। मिल की सीटी से लोगों को समय का पता चलता था कि अब इतने बजे हैं। मिलों के आसपास रहनेवालों की पूरी दिनचर्या मिल की सीटी पर आधारित थी। ये बात मैं दावे से कह सकता हूं; क्यों कि हम रायखड में जिस घर में रहते थे। उस के सामने ही बेचरदास मिल थी।

उस समय नरोडा रोड पर ८ सरसपुर में ८ कालुपुर दरवाजे के बाहर १ जमालपुर दरवाजे के बाहर १ रायखड में १ रायपुर दरवाजे के बाहर १ खोखरा महेमदावाद में ५ मीठीपुर में ३ गोमतीपुर पुल से रखियाल रोड १२ प्रेम दरवाज़ा तरफ ९ असारवा तरफ ४ शाहीबाग तरफ २ और दूधेश्वर रोड पर ३ मिलें थी। 

१९४८ में मिलों में कुल १,३०,०६१(एक लाख तीस हजार इकसठ मजदूर) काम करते थे। इन में ८८२९(आठ हजार आठ सौ उनतीस) महिलाएं थीं। इन में से कई शहर के आसपास के छोटे कस्बों, गांवों से रोज आवागमन करते थे।

*अनुवादक व संकलक - कुमार अहमदाबादी*

रविवार, नवंबर 17

ज़िंदगी में फूल को जो भी सताएगा(ग़ज़ल)


ज़िंदगी में फूल को जो भी सताएगा

ज़िंदगी को वो जहन्नुम ही बनाएगा 


तू डराना चाहता है मौत को प्यारे 

ये बता तू मौत को कैसे डराएगा 


बावली सी हो गयी मैं जानकर ये की

आज बेटा शौक से खाना पकाएगा 


मानता हूं तू बहुत नाराज़ है लेकिन 

भाई के बिन जश्न तू कैसे मनाएगा


वो बहुत ही हंँसमुखा इंसान है यारों

मौत को हंँसकर गले से वो लगाएगा

कुमार अहमदाबादी

नेक गुण आदमी में है ही नहीं(ग़ज़ल)

 

नेक गुण आदमी में है ही नहीं

साफ़ पानी नदी में है ही नहीं 


हाथ को जोडकर खड़ा है पर

सादगी आदमी में है ही नहीं


फूल ताज़े हैं पर है ये हालत

शुद्धता ताज़गी में है ही नहीं 


मूर्ति के सामने खड़ा है पर

भावना बंदगी में है ही नहीं 


नाम उस का है चांदनी लेकिन 

रोशनी चांदनी में है ही नहीं 

कुमार अहमदाबादी


शनिवार, नवंबर 16

बहाना जो किया तूने (ग़ज़ल)


बहाना जो किया तूने बहुत प्यारा बहाना है

मुझे तेरे बहाने को हकीकत से सजाना है


आयी है जब जवानी स्वप्न आयेंगे जवानी के

मुझे आगे का जीवन उन्हीं के साथ बिताना है


कभी रोड़ा कभी गाली मिलेंगे रास्ते में पर 

सफ़र रोके बिना प्रत्येक अड़चन को हटाना है


हे भगवन क्यों नहीं लेते परीक्षा कभी तुम मेरी

मुझे मेरे अटल विश्वास को अब आजमाना है


उसे कुदरत ने सब कुछ दे दिया है इक कलम देकर 

वो है कविराज उस के पास शब्दों का खज़ाना है

कुमार अहमदाबादी


मंगलवार, नवंबर 12

ग़ज़ल (सजन के धैर्य को मत


सजन के धैर्य को मत आजमाओ

वदन से ज़ुल्फ को तुम मत हटाओ


शरारत मत करो जी मान जाओ

अधर प्यासे हैं ज्यादा मत सताओ


सताया स्पर्श से तो बोल उठा मन

मज़ा आया मुझे फिर से सताओ


मुझे मालूम है तुम हो अदाकार 

अदाकारी के कुछ जलवे दिखाओ


अगर विश्वास है खुद पर व मुझ पर

जरा सा हाथ तुम आगे बढाओ

कुमार अहमदाबादी


दैवी ताकत(रुबाई)

  जन्मो जन्मों की अभिलाषा हो तुम सतरंगी जीवन की आशा हो तुम  थोडा पाती हो ज्यादा देती हो दैवी ताकत की परिभाषा हो तुम  कुमार अहमदाबादी