Translate

शनिवार, जून 21

यांत्रिक विकास बेकारी का गोडफादर है

ये जमीं जिस कदर सजाई गई

जिंदगी की तड़प बढ़ाई गई

साहिर लुधियानवी 

साहिर लुधियानवी को बागी शायर कहा जाता है। ये शेर साबित करता है की गलत नहीं कहा है। साहिर ने हिन्दी फिल्मों के लिये अनेक यादगार गीत लिखे हैं। ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है,औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाजार दिया जैसे गीत उन के मिजाज को लेखनी की धार को अच्छी तरह व्यक्त करते हैं।

उस शेर में भी शायर ने बताया है। उन के विद्रोही मिजाज की धार कितनी तीखी है।

साहिर कहते हैं। आज तक मानव ने जिस तरह से विकास किया है। जो विकास किया है। उसने जीवन को मुश्किल बनाया है। मानव ने विकास के नाम पर भौतिक सुविधाओं में वृद्धि की है। हुआ ये है की मानव ने जिन भौतिक सुख सुविधाओं में बढ़ोतरी की है। उस बढ़ोतरी ने मानव के जीवन को दुविधाएं, शारीरिक व मानसिक समस्याएं पैदा की है। दस मानवों का काम जब एक यंत्र करने लगा तो स्वाभाविक है; नौ मानव बेकार हो गये। इसी बेकारी फिर दूसरी समस्याएं पैदा की है। बेकार आदमी को भी अपना और परिवार का पेट तो भरना है। सही रास्ते से रोजगार ना मिलने पर बेकार इंसान गैरकानूनी, अनैतिक रास्ता अपनाने पर मजबूर हो जाएगा। आपने अपने आसपास के सामाजिक वातावरण में एसे इंसान अवश्य देखे होंगे। जो काम करना चाहते हैं। लेकिन उन्हें काम नहीं मिल रहा है; और काम क्यों नहीं मिल रहा है? क्यों कि एक यंत्र दस बीस इंसानों का काम कर रहा है। 

ये सच है। जीवन जितना सरल होगा। जीवन में संघर्ष जितना कम होगा। अन्य समस्याएं उतनी ही ज्यादा होगी। 

यांत्रिक विकास की नकारात्मक असरों को देखना हो तो; आजकल के बच्चों के शरीर को देख लीजिए। आप को १० में से ३ से ४ बच्चे अन्य बच्चों से मोटे दिख जाएंगे। बच्चों में बढ़ रहे मोटापे के मूल में यांत्रिक विकास है। आजकल बच्चे खेल के मैदान में कितना समय बिताते हैं? बहुत  ही कम समय बिताते हैं। ज्यादातर बच्चे शिक्षा के कार्य में व्यस्त रहते हैं। उस से फुरसद मिले तो मोबाइल या कम्प्यूटर गेम लेकर बैठ जाते हैं। 

इसी वजह से समाज में चश्मा पहनने वाले व्यक्तियों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ रही है। 

इंसान ने भौतिक सुख सुविधाओं को विकास का मापदंड मान लिया है। घर में फ्रीज, एयरकंडीशन एवं अन्य आधुनिक उपकरणों का होना विकास का पैमाना माना जाता है। लोग लोन लेकर भी आधुनिक उपकरण बसाते हैं। लोन का चक्कर एक बार शुरु होने के बाद रुकने का नाम नहीं लेता। अब तो परिस्थितियां इतनी बिगड चुकी है। लोन की भरपाई ना कर सकने के कारण पूरे के पूरे परिवार द्वारा सामूहिक आत्महत्या करने की घटनाएं भी घट चुकी है।

ता.11-03-2012 रविवार के दिन गुजराती अखबार जयहिंद में मेरी कॉलम ‘अर्ज करते हैं’ में छपे लेख का

भावानुवाद 


शनिवार, जून 14

ये असल है वो नहीं(ग़ज़ल)


ये असल है वो नहीं

ये नकल है वो नहीं


घास वो गेहूं है ये

ये फ़सल है वो नहीं 


आदमी दोनों हैं पर

ये सरल है वो नहीं 


फर्क दोनों में है क्या 

ये तरल है वो नहीं 


फूल हैं दोनों “कुमार”

ये कमल है वो नहीं

कुमार अहमदाबादी

गुरुवार, जून 12

ख़्वाब आप के आए(ग़ज़ल)

 

रातभर ख़्वाब आप के आए 

साथ मीठास प्रेम की लाए


नींद से प्यार क्यों न हो प्रीतम

स्वप्न में तुम हो इस कदर छाए


कोशिशें छोड़ दो लुभाने की

ये कलम वो नहीं जो बिक जाए


है ख़तरनाक भीड़ से ज्यादा 

पागलों की इस भीड़ के साए


जानवर जाग जाए भीतर का

ज़ुल्म इतना भी न कोई ढाए

कुमार अहमदाबादी 


रविवार, जून 8

बारहा तू मत सता ए ज़िन्दगी (ग़ज़ल)


बारहा तू मत सता ए ज़िन्दगी 

चंद फूलों से मिला ए ज़िन्दगी 


क्यों हमेशा लू बनी रहती है तू

बन कभी ठंडी हवा ए ज़िन्दगी 


आंख बोली लग रही हो आज तुम 

मस्त सावन की घटा ए ज़िन्दगी 


ज़िन्दगी से त्रस्त इक बीमार की

तू ही है उत्तम दवा ए ज़िन्दगी 


थक गया हूं खोज कर अब तू बता

कामयाबी का पता ए ज़िन्दगी 


देर मत कर आ लिपट जा प्रेम से

प्रेम को बनकर लता ए ज़िन्दगी 

कुमार अहमदाबादी  

शनिवार, जून 7

करती है मेरा आदर(रुबाई)


करती है तन मन से मेरा आदर

रखती है मेरी पूरी खोज ख़बर 

हर पल मुझ पर न्यौछावर रहती है

ओढ़ाती है नींद में भी वो चादर

कुमार अहमदाबादी  

तस्वीर उभर आती है (रुबाई)

 

जब तेरी तस्वीर उभर आती है

इक पल में तन्हाई निखर जाती है

सारे फूलों की खुशबू दो पल में

भीतर के मौसम में उतर जाती है

कुमार अहमदाबादी

शुक्रवार, जून 6

प्यार की घटा छाई है(रुबाई)


तन मन में प्यार की घटा छाई है 

कुछ मीठा सोचकर ही शरमाई है

मन करता है झूमो प्यारे सजनी

हौले से मंद मंद मुस्काई है

कुमार अहमदाबादी

सोमवार, जून 2

हमें मालूम है कैसे सजाते हैं पत्थरों को (ग़ज़ल)


हमें मालूम है कैसे सजाते हैं पत्थरों को

ये भी मालूम है कैसे भुनाते हैं अवसरों को


कभी सिर मत उठाना भारतीयों के सामने तुम 

हमेशा हम झुकाते हैं घमंडी उन्नत सरों को


हमारे शस्त्र औ’ रणनीति दुनिया के सामने है

बचाना जानते हैं दुश्मनों से खेतों व घरों को

(उड़ाना जानते हैं दुश्मनों के खेतों व घरों को)


हमारे शेर थे खामोश काफी लंबे समय तक

मगर बेदर्द होकर अब कुचलते हैं विषधरों को


जगत के तात का एहसान कर के स्वीकार लाखों 

करोडों बार मैं सेल्यूट करता हूं हलधरों को

कुमार अहमदाबादी 

बेमौसम बरसात (रुबाई)

जब जब होती है बेमौसम बरसात  शोले बन जाते हैं मीठे हालात  कहती है बरसात आओ तुम भीगो हौले हौले फिर भीगेंगे जज़बात  कुमार अहमदाबादी