रातभर ख़्वाब आप के आए
साथ मीठास प्रेम की लाए
नींद से प्यार क्यों न हो प्रीतम
स्वप्न में तुम हो इस कदर छाए
कोशिशें छोड़ दो लुभाने की
ये कलम वो नहीं जो बिक जाए
है ख़तरनाक भीड़ से ज्यादा
पागलों की इस भीड़ के साए
जानवर जाग जाए भीतर का
ज़ुल्म इतना भी न कोई ढाए
कुमार अहमदाबादी
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