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सोमवार, जून 2

हमें मालूम है कैसे सजाते हैं पत्थरों को (ग़ज़ल)


हमें मालूम है कैसे सजाते हैं पत्थरों को

ये भी मालूम है कैसे भुनाते हैं अवसरों को


कभी सिर मत उठाना भारतीयों के सामने तुम 

हमेशा हम झुकाते हैं घमंडी उन्नत सरों को


हमारे शस्त्र औ’ रणनीति दुनिया के सामने है

बचाना जानते हैं दुश्मनों से खेतों व घरों को

(उड़ाना जानते हैं दुश्मनों के खेतों व घरों को)


हमारे शेर थे खामोश काफी लंबे समय तक

मगर बेदर्द होकर अब कुचलते हैं विषधरों को


जगत के तात का एहसान कर के स्वीकार लाखों 

करोडों बार मैं सेल्यूट करता हूं हलधरों को

कुमार अहमदाबादी 

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