बारहा तू मत सता ए ज़िन्दगी
चंद फूलों से मिला ए ज़िन्दगी
क्यों हमेशा लू बनी रहती है तू
बन कभी ठंडी हवा ए ज़िन्दगी
आंख बोली लग रही हो आज तुम
मस्त सावन की घटा ए ज़िन्दगी
ज़िन्दगी से त्रस्त इक बीमार की
तू ही है उत्तम दवा ए ज़िन्दगी
थक गया हूं खोज कर अब तू बता
कामयाबी का पता ए ज़िन्दगी
देर मत कर आ लिपट जा प्रेम से
प्रेम को बनकर लता ए ज़िन्दगी
कुमार अहमदाबादी
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