ये जमीं जिस कदर सजाई गई
जिंदगी की तड़प बढ़ाई गई
साहिर लुधियानवी
साहिर लुधियानवी को बागी शायर कहा जाता है। ये शेर साबित करता है की गलत नहीं कहा है। साहिर ने हिन्दी फिल्मों के लिये अनेक यादगार गीत लिखे हैं। ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है,औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाजार दिया जैसे गीत उन के मिजाज को लेखनी की धार को अच्छी तरह व्यक्त करते हैं।
उस शेर में भी शायर ने बताया है। उन के विद्रोही मिजाज की धार कितनी तीखी है।
साहिर कहते हैं। आज तक मानव ने जिस तरह से विकास किया है। जो विकास किया है। उसने जीवन को मुश्किल बनाया है। मानव ने विकास के नाम पर भौतिक सुविधाओं में वृद्धि की है। हुआ ये है की मानव ने जिन भौतिक सुख सुविधाओं में बढ़ोतरी की है। उस बढ़ोतरी ने मानव के जीवन को दुविधाएं, शारीरिक व मानसिक समस्याएं पैदा की है। दस मानवों का काम जब एक यंत्र करने लगा तो स्वाभाविक है; नौ मानव बेकार हो गये। इसी बेकारी फिर दूसरी समस्याएं पैदा की है। बेकार आदमी को भी अपना और परिवार का पेट तो भरना है। सही रास्ते से रोजगार ना मिलने पर बेकार इंसान गैरकानूनी, अनैतिक रास्ता अपनाने पर मजबूर हो जाएगा। आपने अपने आसपास के सामाजिक वातावरण में एसे इंसान अवश्य देखे होंगे। जो काम करना चाहते हैं। लेकिन उन्हें काम नहीं मिल रहा है; और काम क्यों नहीं मिल रहा है? क्यों कि एक यंत्र दस बीस इंसानों का काम कर रहा है।
ये सच है। जीवन जितना सरल होगा। जीवन में संघर्ष जितना कम होगा। अन्य समस्याएं उतनी ही ज्यादा होगी।
यांत्रिक विकास की नकारात्मक असरों को देखना हो तो; आजकल के बच्चों के शरीर को देख लीजिए। आप को १० में से ३ से ४ बच्चे अन्य बच्चों से मोटे दिख जाएंगे। बच्चों में बढ़ रहे मोटापे के मूल में यांत्रिक विकास है। आजकल बच्चे खेल के मैदान में कितना समय बिताते हैं? बहुत ही कम समय बिताते हैं। ज्यादातर बच्चे शिक्षा के कार्य में व्यस्त रहते हैं। उस से फुरसद मिले तो मोबाइल या कम्प्यूटर गेम लेकर बैठ जाते हैं।
इसी वजह से समाज में चश्मा पहनने वाले व्यक्तियों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ रही है।
इंसान ने भौतिक सुख सुविधाओं को विकास का मापदंड मान लिया है। घर में फ्रीज, एयरकंडीशन एवं अन्य आधुनिक उपकरणों का होना विकास का पैमाना माना जाता है। लोग लोन लेकर भी आधुनिक उपकरण बसाते हैं। लोन का चक्कर एक बार शुरु होने के बाद रुकने का नाम नहीं लेता। अब तो परिस्थितियां इतनी बिगड चुकी है। लोन की भरपाई ना कर सकने के कारण पूरे के पूरे परिवार द्वारा सामूहिक आत्महत्या करने की घटनाएं भी घट चुकी है।
ता.11-03-2012 रविवार के दिन गुजराती अखबार जयहिंद में मेरी कॉलम ‘अर्ज करते हैं’ में छपे लेख का
भावानुवाद
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