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शुक्रवार, जून 15

ग़ज़ल [जला है ना जलेगा कोई]

ये दावा  ज्योत के दीवाने करते हैं, हमारे दीये  के पश्चात अब दीया जला है ना जलेगा कोई
ये समझाओ कोई दीवानों को की चाँद तारे या सितारे क्या है सूरज सा जला है ना जलेगा कोई

न जाने क्यों व कैसे ये गलतफहमी हो गई लोगों को, की इक बार भर देंगे तो जीवनभर चलेगा पर
दीये को प्रज्वलित रखने के लिए तेल चाहिए सदा बिन तेल के दीया जला है ना जलेगा कोई

जगत में चंद व्यक्ति ऐसे हैं जो कालिमा से प्यार करते हैं वे अंधेरों में जीये हैं व जीयेंगे
उजालों में जिन्हें आना ही ना है उन के मन को जगमगानेवाला दीया ना जला है ना जलेगा कोई

हजारों दीयों ने रोशन किया है विश्व को ईसा मसीह गुरू नानक अषो जरथुष्ट्र गाँधी बुद्ध
विवेकानंद एडीसन से दीये भी जले हैं कैसे हम ये मान लें दावा जला है ना जलेगा कोई

बहुत से लोग पूजा चाँद की करते हैं हिन्दू और मोमिन भी मगर हमने सदा सूरज को पूजा है
जले हैं सूर्य किरनों की अगन में ईस कदर की ईतना सा तुम जान लो हम सा जला है ना जलेगा कोई
कुमार अहमदाबादी

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