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रविवार, जून 17

तपना पड़ेगा,

हेम हूँ तो क्या हुआ तपना पड़ेगा,
हार बनने के लिए गलना पड़ेगा.

संग को गर मोल अपना है बढ़ाना.
रूप मूरत का उसे धरना पड़ेगा.

नार नखरेदार हूँ मैं,पी न माने,
मन लुभाने के लिए सजना पड़ेगा.

भोर शीतल, शाम शीतल ,मध्य कैसा,
दोपहर में भानु सा तपना पड़ेगा.

जिन्दगी ये हर घडी लेगी परीक्षा ,
जो न दे उस को सदा मरना पड़ेगा.

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जब जब होती है बेमौसम बरसात  शोले बन जाते हैं मीठे हालात  कहती है बरसात आओ तुम भीगो हौले हौले फिर भीगेंगे जज़बात  कुमार अहमदाबादी