आदमी सो गया।
राख में खो गया॥
साँस थी बोझ पर।
अंत तक ढो गया॥
भोर से शाम तक।
हँसकर वो गया॥
नैन टकराये यूँ।
हादसा हो गया॥
खुशबू देने का गुण।
फूल में बो गया॥
क्या पता कितनों की।
मौत पे रो गया॥
भीड में सच कहाँ?
जाने कब खो गया॥
शब्द में छंद में।
भाव पिरो गया॥
शब्दरथ का 'कुमार'।
सारथी हो गया
कुमार अमदावादी
साहित्य की अपनी एक अलग दुनिया होती है। जहां जीवन की खट्टी मीठी तीखी फीकी सारी भावनाओं को शब्दों में पिरोकर पेश किया जाता है। भावनाओं को सुंदर मनमोहक मन लुभावन शब्दों में पिरोकर पेश करने के लिये लेखक के पास कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। दूसरी तरफ रचना पढ़कर उस का रसास्वादन करने के लिये पाठक के पास भी कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। इसीलिये मैंने ब्लॉग का नाम कल्पना लोक रखा है।
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बुधवार, जून 13
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