फूल सी जिंदगी जी गई।
खुशबू से तरबतर कर गई॥
ध्रुव तारे सा जीवन जी कर।
सब को यादें मधुर दे गई॥
कर्म करना ही है जिंदगी।
कार्यों से सिद्ध तुम कर गई॥
आग में क्यों नहाना पड़ा?
फाँस कब कौन सी चुभ गई?
द्वार मनपीर के खोले बिन।
प्रश्नों के जाल कई बुन गई॥
पीर अक्सर ज़हर बनती है।
शीव बन हँस के विष पी गई॥
उम्रभर माली रोता रहे।
बरखा ऋत भेँट में दे गई॥
हम सिचेंगे कमल औ' गुलाब।
फूल दो प्यारे जो छोड़ गई॥
उम्रभर भर न पाएँगे हम।
शून्य सा शून्य जो छोड़ गई॥
कुमार अमदावादी
साहित्य की अपनी एक अलग दुनिया होती है। जहां जीवन की खट्टी मीठी तीखी फीकी सारी भावनाओं को शब्दों में पिरोकर पेश किया जाता है। भावनाओं को सुंदर मनमोहक मन लुभावन शब्दों में पिरोकर पेश करने के लिये लेखक के पास कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। दूसरी तरफ रचना पढ़कर उस का रसास्वादन करने के लिये पाठक के पास भी कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। इसीलिये मैंने ब्लॉग का नाम कल्पना लोक रखा है।
Translate
बुधवार, जून 13
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
स्पेश्यल मैरेज एक्ट १९५४(1954) का फायदा
स्पेश्यल मैरेज एक्ट १९५४(1954) का फायदा गुजरात समाचार की ता-05-05-2024 रविवार की रविपूर्ति के पांचवे पृष्ठ पर छपे लेख का अनुवाद अनुवादक - म...
-
अहमदाबाद और आसपास के शहरों में राजस्थान के विभिन्न नगरों और गांवों से रोजी रोटी के लिये आये लोग बसे हैं। वे यहां अपने व्रत और त्यौहार मनाते...
-
कुंदन कला - कलाइयों की अदभुत कला लेखक - कुमार अहमदाबादी कुंदन कला कलाईयों की एक एसी कला है। जो अदभुत व अद्वितीय है। हालांकि आज तक कभी भी इस...
-
कमसिन आंखें लग रही है बादामी ये कश्मीरी भी है व है आसामी जीवन इन के साथ मुझे जीना है स्वीकारो प्रस्ताव व भर दो हामी कुमार अहमदाबादी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें