जब भी बुलायेंगे गीत तेरे
चला मैं आऊँगा मीत मेरे
कभी मैं आऊँगा बन के यादें
कभी मैं आंसु बन टपकूंगा
औ...र शबद की धारा बनके
कलम से स्याही बन के बहूंगा...जब
गंगा जमना बनके प्यारे
संगम में न मिल सके तो
बन के सावन भादो सजनी
बादल में हम बस जाएँगे
जीवन पथ पे चल के प्यारे
इक दूजे के हो न सके तो
बन के खुशबू फूलों की हम
फूलों में ही बस जाएँगे...जब
चहकेगी जब यादों की कोयल
सूर लहराएँगे जैसे पायल
इक इक घुंघरूं ये कहेगा
पूछो ना ये क्युं हैं घायल
बरसेगी घनघोर घटायें
रोयेगी शिव की जटायें
रो रो के वो ये कहेगी
पूछो ना क्युं रोये कोयल...जब
कुमार अहमदाबादी
साहित्य की अपनी एक अलग दुनिया होती है। जहां जीवन की खट्टी मीठी तीखी फीकी सारी भावनाओं को शब्दों में पिरोकर पेश किया जाता है। भावनाओं को सुंदर मनमोहक मन लुभावन शब्दों में पिरोकर पेश करने के लिये लेखक के पास कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। दूसरी तरफ रचना पढ़कर उस का रसास्वादन करने के लिये पाठक के पास भी कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। इसीलिये मैंने ब्लॉग का नाम कल्पना लोक रखा है।
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