अब लाश को जल्दी से जला दो।
कर्तव्य ये आखरी निभा दो॥
करना कुछ चाहते हो गर तुम।
बदनामी के दाग को मिटा दो॥
अब गई गुजरी से तोड़ नाता।
अश्रुओँ में याद को बहा दो॥
एकांत की आग में झुलसना।
जालिम दिलबर को ये सजा दो॥
है इश से ये अर्ज देश पर से।
आतंक के साये को हटा दो॥
तालीम ये सब को देनी होगी।
कि शूल को मूल तक मिटा दो॥
कानून को खोखला जो कर रही।
दीमक मिट जाए वो दवा दो॥
बस बात ये कहना चाहे 'कुमार'।
अच्छाई को तुम सदा हवा दो॥
कुमार अमदावादी
साहित्य की अपनी एक अलग दुनिया होती है। जहां जीवन की खट्टी मीठी तीखी फीकी सारी भावनाओं को शब्दों में पिरोकर पेश किया जाता है। भावनाओं को सुंदर मनमोहक मन लुभावन शब्दों में पिरोकर पेश करने के लिये लेखक के पास कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। दूसरी तरफ रचना पढ़कर उस का रसास्वादन करने के लिये पाठक के पास भी कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। इसीलिये मैंने ब्लॉग का नाम कल्पना लोक रखा है।
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बुधवार, जून 13
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