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बुधवार, दिसंबर 14

जुगनू

मित्रोँ, आज मुक्तक पेश करता हूँ।


रोशन नजर से मार्ग को वो जगमगा गया
घनघोर वन में राह पथिक को बता गया
पागल सी झूमने लगी है ख्वाहिशें, इन्हें
दुल्हन नई नवेली लगे यूं वो सजा गया
कुमार अहमदाबादी

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बेमौसम बरसात (रुबाई)

जब जब होती है बेमौसम बरसात  शोले बन जाते हैं मीठे हालात  कहती है बरसात आओ तुम भीगो हौले हौले फिर भीगेंगे जज़बात  कुमार अहमदाबादी