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शुक्रवार, दिसंबर 16

दर्द सोलहवें साल वाला

 


गुलाब सा गुलाबी औ’ कमल सा पवित्र
वो सोलहवां साल आज बहुत याद आ रहा है
ना बचपन था ना जवानी थी मगर धड़कनें किसी की दीवानी थी
दीवानी थी एक कली की जो फूल बनने की ड्योढी पर खड़ी थी
दीवाने को देखकर उस की आंख शर्माकर झुक जाती थी
मगर, झुकते झुकते भी बहुत कुछ कह जाती थी
वो कह देती थी वो सब बातें जो कहते हुए
जुबान लड़खड़ा सकती थी थर्रा भी सकती थी
या कहने से ही कतरा सकती थी मगर आंख
शर्मीली होकर भी नीडर थी बहादुर थी
वो सोलहवां साल जब जीवन से
परिचय होने की क्रिया शुरू हो रही थी
तब, जिसने
जीवन के सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्यक्ति से मुलाकात करवाई थी
और जीवन का सर्वाधिक मीठा दर्द भी दिया था
इतना महत्वपूर्ण की, उस दर्द ने हमेशा उस समय भी साथ दिया
जब समय भी साथ छोड़कर चला गया था
तब भी उस दर्द ने एक विश्वसनीय दोस्त बनकर साथ निभाया था निभा रहा है
क्यों? क्यों कि वो सोलहवें साल वाला दर्द है
और, आज भी देख लो वही दर्द इस कलम को चलने के लिए प्रेरित कर रहा है।
*कुमार अहमदाबादी*

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