साहित्य की अपनी एक अलग दुनिया होती है। जहां जीवन की खट्टी मीठी तीखी फीकी सारी भावनाओं को शब्दों में पिरोकर पेश किया जाता है। भावनाओं को सुंदर मनमोहक मन लुभावन शब्दों में पिरोकर पेश करने के लिये लेखक के पास कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। दूसरी तरफ रचना पढ़कर उस का रसास्वादन करने के लिये पाठक के पास भी कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। इसीलिये मैंने ब्लॉग का नाम कल्पना लोक रखा है।
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शनिवार, जनवरी 28
बुधवार, जनवरी 25
बसंत आया रे (गीत)
मंगलवार, जनवरी 24
सत्य भारत की शान है (ग़ज़ल)
सत्य भारत की शान है
मान है औ’ अभिमान है
जो बताया है सत्य ने
रास्ता वो आसान है
सत्य को जो पढ़ ना सके
आदमी वो नादान है
सोचने की है बात ये
सत्य से तू अनजान है
ओम में क्या है सत्य तू
सत्य की ही संतान है
*कुमार अहमदाबादी*
शनिवार, जनवरी 21
सत्य लिखना हो अगर(ग़ज़ल)
बुधवार, जनवरी 18
शाबाशी देनी है (मुक्तक)
ताज़ी या फिर बासी देनी है
व्यंग में शाबाशी देनी है
सामने आ जाए मेरे तो
जिंदगी को फांसी देनी है
कुमार अहमदाबादी
मंगलवार, जनवरी 17
(मुंड मुंडाया) अखे के छप्पे का अनुवाद
મૂંડ મુંડાવ્યું હરિને કાજ, લોક પૂજેને કહે મહારાજ
મનમાં જાણે હરીએ કૃપા કરી, માયામાં લપટાણો ફરી
સૌને મન કરે તે કલ્યાણ, અખા એને હરિ મળવાની હાણ
અખો
अनुवाद
मुंड मुंडाया हरि के काज, लोक पूजे औ’ कहे महाराज
मन में सोचे हरि ने कृपा करी, माया में उलझी जान
सब सोचे ये करे कल्याण, अखा को हरी मिलने की शान
अनुवादक – कुमार अहमदाबादी
सोमवार, जनवरी 9
नव वर्ष का शुभारंभ
नववर्ष का आरंभ मेरे लिए बहुत अच्छा रहा। पहले एक तारीख को कवि सम्मेलन में काव्य पठन का अवसर मिला; उस कार्यक्रम में सम्मान पत्र भी मिला। अब अन्य एक साहित्यिक सम्मान *हिन्दी गौरव सम्मान 2022* मिला है।
कटिली काया (मुक्तक)
आंखें हैं नशीली कितनी क्या कहूं सनम
मादक है जवानी कितनी क्या कहूं सनम
काया है कटीली नक्शीदार शिल्प सी
है रूह सुहानी कितनी क्या कहूं सनम
कुमार अहमदाबादी
रविवार, जनवरी 8
क्यों तू ये उम्मीद रखे
ओ रे मनवा क्यों तू ये उम्मीद रखे
कोई तेरे संग चलेगा कोई तेरा संग करेगा
इस दुनिया में आया है जो,
जो गया है इस दुनिया से
कोई न आया संग उस के ना कोई संग गया है..............फिर क्यों तू ये उम्मीद रखे...
माना तूने खाया धोखा, पर नहीं तू कोई अनोखा
इस दुनिया में कदम कदम पर धोखे होते आए हैं
इस दुनिया के लोगों ने हंस के धोखे खाए हैं................फिर क्यों तू ये उम्मीद रखे...
हंस के जीवन जीना पड़ेगा, दर्द को भी पीना पड़ेगा
जग में गर कुछ पाना है तो मुस्कुराकर जीना पड़ेगा........फिर क्यों तू ये उम्मीद रखे...
कुमार अहमदाबादी
गुरुवार, जनवरी 5
अनूदित मुक्तक( दो नाम )
ए हृदय निष्फल प्रणय के दो ही केवल नाम है
चूप रहे तो आबरू है, बोले तो इल्जाम है
मैं तो जीये जाता हूं जीवन किसी तृष्णा बिना
किसे परवा है भरा है या कि ये खाली जाम है
अनुवादक – कुमार अहमदाबादी
दैवी ताकत(रुबाई)
जन्मो जन्मों की अभिलाषा हो तुम सतरंगी जीवन की आशा हो तुम थोडा पाती हो ज्यादा देती हो दैवी ताकत की परिभाषा हो तुम कुमार अहमदाबादी

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मैं समाज की वाडी हूं। आज मेरी खुशी का ठिकाना नहीं है या फिर यूं कहें कि आज मैं खुशी से फूली नहीं समा रही हूं; और खुशी से झूम रही हूं। बताती ...
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*दिल जो पखेरु होता पिंजरे में मैं रख लेता* *सिने मैजिक* भाग -०१ *ता.०३-१२-२०१० के दिन गुजरात समाचार में लेखक अजित पोपट द्वारा लिखित* *सिने म...
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*काम कामिनी का दास है* श्री भर्तहरी विरचित श्रंगार शतक के श्लोक का भावार्थ पोस्ट लेखक - कुमार अहमदाबादी नूनमाज्ञाकरस्तस्या: सुभ्रुवो मकरध्...