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गुरुवार, जनवरी 5

अनूदित मुक्तक( दो नाम )

 


ए हृदय निष्फल प्रणय के दो ही केवल नाम है
चूप रहे तो आबरू है, बोले तो इल्जाम है
मैं तो जीये जाता हूं जीवन किसी तृष्णा बिना
किसे परवा है भरा है या कि ये खाली जाम है
अनुवादक – कुमार अहमदाबादी

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मीठी वाणी क्यों?

  कहता हूं मैं भेद गहन खुल्ले आम  कड़वी वाणी करती है बद से बदनाम  जग में सब को मीठापन भाता है  मीठी वाणी से होते सारे काम  कुमार अहमदाबादी