सत्य लिखना हो अगर तो ही कलम को थामना
झूठ आता ही नजर तो ही कलम को थामना
आइने को सामने सब के अगर तुम रख सको
सच्ची देनी हो खबर तो ही कलम को थामना
बात गर सामान्य जनता की ग़ज़ल में कह सको
भाव करते हो असर तो ही कलम को थामना
कार्य कर्ता कर्म कर्मणी छंद लय के साथ गर
व्याकरण की हो कदर तो ही कलम को थामना
तीर जब जब लोग मारे मुस्कुराकर सौ दफा
गर पी सकते हो जहर तो ही कलम को थामना
कुमार अहमदाबादी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें