Translate

सोमवार, जनवरी 9

कटिली काया (मुक्तक)


 
आंखें हैं नशीली कितनी क्या कहूं सनम
मादक है जवानी कितनी क्या कहूं सनम
काया है कटीली नक्शीदार शिल्प सी
है रूह सुहानी कितनी क्या कहूं सनम
कुमार अहमदाबादी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

बेमौसम बरसात (रुबाई)

जब जब होती है बेमौसम बरसात  शोले बन जाते हैं मीठे हालात  कहती है बरसात आओ तुम भीगो हौले हौले फिर भीगेंगे जज़बात  कुमार अहमदाबादी