एक सुनार जडिये रामू की घटना है. रामू ने पिता के पास से एक नीलम की अंगूठी पहनने के लिए ली. पिता ने चेतावनी देकर कहा कि देख ये नीलम है. ये सब को सूट नहीं करता. वाणी व्यवहार में थोड़ा ध्यान रखना. रामू ने कहा ठीक है. उसने नीलम पहन लिया. पहनने के दूसरे तीसरे दिन एक मित्र ने रामू को कहा क्या बात है. आज कल तेरी आवाज में रौब बहुत है. जब की रामू बहुत विनम्र व्यक्ति था. रामू ने मित्र की बात अनसुनी कर दी. उसी दिन शाम को दूसरे मित्र ने यही राय दी. रामू ने फिर अनसुनी कर दी. एक दिन छोड़कर रामू के एक अन्य मित्र जो गुजराती था. उसने वही बात कही. तब रामू थोड़ा सोच में पड़ गया पर माना नहीं.
उस समय रामू राजकोटवाला का काम करता था. उस के पास काम भरा हुआ था. लगभग सारा अर्जेंट था. यूं कहिए सांस लेने की फुरसद नहीं थी.
शाम को चार बजे के आसपास रामू के पास व्यापारी भाइयों में से एक का फोन आया. व्यापारी ने कहा. मैं अर्जेंट घाट भेज रहा हूं. परसों सुबह तक जितना हो उतना रख लेना. रामू ने कहा. आप की दुकान के जो घाट पहले से हैं. आप उन में से जीतने कम नंग करने की इजाजत देंगे. उतने नंग कर दूंगा. व्यापारी ने कहा उन में से एक भी कम नहीं करना है और ये भी करना है. तब रामू ने कहा फिर एक भी नहीं होगा. क्यों कि पहले से जो हैं वो भी बड़ी मुश्किल से होंगे या शायद ना भी हो. तब व्यापारी ने कहा ठीक है. कल हिसाब लेकर आ जाना.
हिसाब लेकर आ जाना मतलब गेम ओवर….
खैर…रामू सारा हिसाब और बाकी के सारे घाट लेकर गया.
रामू और व्यापारी आमने सामने बैठे. रामू ने पूछा आप के कहे अनुसार मैं सारा हिसाब ले आया हूं. लेकिन मैं ये जरूर जानना चाहूंगा. मेरी भूल क्या है?
व्यापारी ने कहा कल आपने जब बात की तब आप की आवाज में रौब बहुत था.
रामू ने कहा मेरी आवाज में रौब नहीं था. आप मुझे बरसों से जानते हैं. क्या आपने कभी भी मेरी आवाज में या वाणी व्यवहार में किसी प्रकार का रौब या रुतबा या एसा कोई गुण देखा है?
व्यापारी भी ईमानदार था. उसने कहा नहीं देखा. इसीलिए तो मुझे गुस्सा आया और हिसाब लाने के लिए कह दिया.
रामू ने कहा मैं मेरी तरफ से एक ही बात कह सकता हूं. मेरी आवाज में या मेरे इरादे में कोई रुतबा या रौब वाली बात नहीं थी. और देखिए ये सारे घाट आप के ही हैं. आप जानते हैं ये भी सब होंगे या नहीं. मैंने मेरा पक्ष आप के सामने रख दिया है. अब आप जो कहोगे. वो स्वीकार है.
व्यापारी ही कहा. आप ये सारे घाट वापस रख लीजिए. चलो, अच्छा हुआ. खुलासा हो गया. रामू घर वापस आया. आते ही उस ने सब से पहले नीलम की अंगूठी उतारी और पिता को लौटा दी. पिता ने पूछा क्या हुआ. रामू ने सारी बात बताई. पिता ने कहा. तूने सही किया. एक आदमी गलत हो सकता है. दो आदमी गलत हो सकते हैं. लेकिन एक ही बात अलग अलग क्षेत्र के व्यक्ति अगर कह रहे हैं तो सारे तो जूठे नहीं हो सकते.
कुमार अहमदाबादी
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