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गुरुवार, मई 16

भाग्यवान क्या पीते हैं?


छके मदन की छाक, मुदित मदिरा के छाके

करत सुरत रण रंग, जंग कर कछु थाके

पौढ रहे लिपटाय, अंग अंगन में उरझे

बहुत लगी जब प्यास तबहि चित चाहत मुरझे

उठ पियत आधी रात गये, शीदल जल या शारद को

नर पुण्यवन्त फल लेत है निज सुकृत हि की फरद को

।।४७।।


सार

शरद की चांदनी की रात में प्रेम प्रक्रिया से थकी हुयी तृप्त नारी के द्वारा लाया गया; जल उसी के हाथों भाग्यशाली ही पीते हैं।

पोस्ट लेखक - कुमार अहमदाबादी

श्री भर्तहरी रचित श्रंगार शतक से साभार


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