सप्तरंगी दिल्लगी अच्छी लगी
आज थोड़ी मयकशी अच्छी लगी
घुल गयी जो पूर्णिमा की रात को
खीर में वो चांदनी अच्छी लगी
रात थर थर कांपने के बाद ये
धूप थोड़ी गुनगुनी अच्छी लगी
एक लंबे युद्ध से थकने के बाद
दुश्मनी से दोस्ती अच्छी लगी
षोडशी के चेहरे पर फूल सी
स्निग्ध भावुक कमसिनी अच्छी लगी
कुमार अहमदाबादी
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