छेड़ मत लाचार को
काच से किरदार को
मुस्कुराकर प्रेम से
दे दवा बीमार को
त्याग कहकर भाग मत
छोड़ मत परिवार को
सात फेरे ले लिये
अब सजा संसार को
मत बुला आफ़त को तू
छेड़ कर सरकार को
मत झिझक तू रास्ता
पूछ ले दो चार को
लालची बनकर ‘कुमार’
मत गिरा किरदार को
कुमार अहमदाबादी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें