तुम्हारे चेहरे पर तो शराफ़त है
मगर दिल में सनम खूनी अदावत है
न मिलती है तू ना ही करती है इन्कार
गज़ब की फूल सी कोमल शरारत है
मिलन के बाद होठों ने कहा उफ़ उफ़
नरम नाज़ुक लबों में क्या नफासत है
तू मिलती है मुझे पर जानता हूं मैं
तुम्हारे मन में हल्की सी बगावत है
करम करते समय ये याद रखना तू
उपर सब से बड़ी वाली अदालत है
अदाएं जान ले लेती हैं इक पल में
है कातिल पर अदाओं में नज़ाकत है
कुमार अहमदाबादी
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