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शुक्रवार, नवंबर 24

छू लो अभी तक(रुबाई)


इस देहलता व मन को छू लो अभी तुम

मिट्टी से बने घड़े को फोड़ो अभी तुम

मौसम व निशा है मस्त मादक ए कुमार

यौवन इक संपदा है लूटो अभी तुम

*कुमार अहमदाबादी*

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मुलाकातों की आशा(रुबाई)

मीठी व हंसी रातों की आशा है रंगीन मधुर बातों की आशा है  कुछ ख्वाब एसे हैं जिन्हें प्रीतम से मदमस्त मुलाकातों की आशा है  कुमार अहमदाबादी