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रविवार, मई 12

मीठी वाणी क्यों?

 



कहता हूं मैं भेद गहन खुल्ले आम 

कड़वी वाणी करती है बद से बदनाम 

जग में सब को मीठापन भाता है 

मीठी वाणी से होते सारे काम 

कुमार अहमदाबादी

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चल जल्दी चल (रुबाई)

  चल रे मन चल जल्दी तू मधुशाला  जाकर भर दे प्रेम से खाली प्याला मत तड़पा राह देखने वाली को  करती है इंतजार प्यासी बाला  कुमार अहमदाबादी