*मीठी वाणी का जीवन*
*पोस्ट लेखक - कुमार अहमदाबादी*
*नीती शतक से साभार*
केयूराणि न भूषयन्ति पुरुष हारा न चन्द्रोज्जवला
न स्नानं न विलेपनं न कुसुमं नालङ्कृता मूर्धजाः
वाण्ये का समलङ्करोति पुरुषं या संस्कृता धार्यते
क्षीयन्ते खामु भूषणानि सततं वाग्भूषणं भूषणम् ।19।
केयूर(बाजूबंध, भुजबंध) और चन्द्रमा के समान उज्वल मोतियों के हार धारण करने और उबटन करने तथा केशों में पुष्प धारण करने से एसी शोभा नहीं हो सकती; जैसी कि संस्कार युक्त अलंकृत वाणी से होती है: क्यों कि अलंकार तो नष्ट हो जाते हैं। लेकिन अलंकृत वाणी अर्थात मीठी वाणी मीठे बोल कभी नष्ट नहीं होते। उन का प्रभाव जीवन के साथ और जीवन के बाद भी रहता है। आदमी संसार से चला जाता है। लेकिन उस की मीठी वाणी यहीं रह जाती है।
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