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रविवार, मई 5

स्पेश्यल मैरेज एक्ट १९५४(1954) का फायदा




स्पेश्यल मैरेज एक्ट १९५४(1954) का फायदा

गुजरात समाचार की ता-05-05-2024 रविवार की रविपूर्ति के पांचवे पृष्ठ पर छपे लेख का अनुवाद
अनुवादक - महेश सोनी

स्पेश्यल मैरेज एक्ट १९५४(1954) का सबसे बडा फायदा जानिये।
भारत विविधताओं से भरा राष्ट्र है। यहां भांति भांति के रीत रिवाज संस्कार व संस्कृति को मानने वाले व उस के अनुसार जीने वाली प्रजा है। सरकार ने शादी के हेतु उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये खास कानून बनाएं हैं।
जैसे कि हिन्दू मैरिज एक्ट १९५५(Hindu martige act 1955) हिन्दू की हिन्दू से शादी के बारे में है। मुस्लिमों को शादी(निकाह) करनी हो तो मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) (muslim personal law(shariat) application act 1937) एप्लिकेशन एक्ट १९३७(1937) का पालन करना पड़ता है। ईसाईयों के लिये इन्डियन क्रिश्चियन मैरिज एक्ट १८७२(1872) है। इसी तरह पारसीयों के लिये अलग एक्ट है। जो पारसी मैरिज एन्ड डिवोर्स एक्ट १९३६(1936) का है। सीक्खों के लिये आनंद मैरिज एक्ट  1909 भारत सरकार ने बनाया है।

उपरोक्त सारे कानून उन व्यक्तियों के लिये हैं। जब एक ही धर्म के लडका लडकी की शादी का मामला होता है। इन धर्मों का पालन करने वाले जब एक ही धर्म के होते हैं। तब उपरोक्त कानून असरकर्ता होते हैं। जैसे की अगर कोई लडका हिन्दू मैरिज एक्ट के अनुसार शादी करना चाहता हो तो उस से शादी करने वाली लडकी भी हिन्दू ही होनी चाहिए। मुसलमान लडकी अगर मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार शादी करना चाहती हो तो लडका भी मुस्लिम होना चाहिए। एसा ही अन्य धर्मों के लिये है!
एक उदाहरण देकर समझाउं? अब अगर कोई पारसी लडका हिन्दू लड़की से शादी करना चाहता हो तो उस के सामने कानून के दो विकल्प उपलब्ध हैं। एक हिन्दू मैरिज एक्ट और दूसरा पारसी मैरिज एन्ड डिवोर्स एक्ट; इन दो कानूनों के अंतर्गत वे शादी कर सकते हैं।
लेकिन खूबी की बात ये है। जिस तिस कानून के अंतर्गत शादी करने वाले दोनों व्यक्ति एक ही धर्म का पालन करने वाले होने चाहिये; और अगर दो में से एक व्यक्ति अलग धर्म की हो तो जिस कानून को मानकर उस के अंतर्गत शादी कर रहे हों: पहले उस धर्म का स्वीकार करना पड़ता है। अगर, एक मुस्लिम लड़का इसाइ लडकी से मुस्लिम पर्सनल लॉ के अंतर्गत शादी कर रहा हो तो लडका तो मुस्लिम है; लेकिन इसाइ लडकी को भी मुस्लिम धर्म का स्वीकार करना पड़ता है। उस के बाद ही दोनों को मुस्लिम पर्सनल लॉ अपने दायरे में निकाह की मंजूरी देता है।
दूसरी तरफ पति पारसी हो और पति सीक्ख हो तो इन दोनों को कानून श्रेष्ठ विकल्प देता है। इस विकल्प के अनुसार उन दोनों मे से एक को भी अपना धर्म परिवर्तन करने की ज़रुरत नहीं रहती।

अगर पति पत्नी दोनों के धर्म अलग हों और दोनों को धर्म परिवर्तन किये बिना शादी करनी हो तो  वे स्पेशियल मैरिज एक्ट १९५४(1954) की कानूनी सुविधा के अंतर्गत शादी कर सकते हैं। उन के लिये यही एकमात्र विकल्प है। स्पेश्यल मैरिज एक्ट १९५४(1954) का यही विशेष लाभ है कि उस के अंतर्गत दोनों अपना अपना धर्म बदले बिना पति पत्नि के संबंध से जुड सकते हैं। दूसरे कानूनों की तरह ये कानून शादी से पहले धर्म परिवर्तन के लिये बाध्य नहीं करता। इस के अंतर्गत शादी करने वालों को अपना धर्म बदलने की जरुरत नहीं पडती।

गुजरात समाचार की ता05-05-2024 रविवार की रविपूर्ति के पांचवे पृष्ठ पर छपे लेख का अनुवाद
अनुवादक - महेश सोनी


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