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सोमवार, सितंबर 23

पास बैठो दो घड़ी मेरे सनम (ग़ज़ल)


पास बैठो दो घड़ी मेरे सनम

गर न बैठे तो तुम्हें दूंगी कसम


जिंदगी में मौज ही सब कुछ नहीं 

ध्येय को भी सामने रखना बलम


खुद के पैरों पर ही चलना ताकि ये

कह सको इस जग को हैं खुद्दार हम


मुस्कुराकर प्रेम से हर फर्ज को

गर निभाओगे सफल होगा जन्म


राक्षसों को चीरते हैं भारतीय 

थे व हैं नरसिंह के अवतार हम


चंद लोगों को मिली है ये सजा

हाथ में ही फट गये मैसेज बम

कुमार अहमदाबादी 


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