निबंध का अर्थ है- विशेष रुप से बंध यानी एक ऐसी व्यवस्था जिसमें बंधकर हमारा कोई विषय चलता है। हमारा विचार , या हमारी घटना उसको अनुशासित करके लिखा जाता है। निबंध विस्तृत भी हो सकता है और संक्षिप्त भी। लेकिन निबंध एक अवतरण "नहीं हो सकता एक निबंध में कई अवतरण आ सकते हैं ।
निबंध अपने आप में एक पूर्ण अभिव्यक्ति है।
हम किसी भी विचार ,भाव या वर्णन इन सब को व्यवस्थित ढंग से जब लिखते हैं तो निबन्ध हो जाता है।
वैसे तो साहित्य को किसी नियम में नहीं बांध पाते न ही बांध सकते हैं ,न विधान है तथापि सुविधा के लिए हम प्रत्येक विधा को उनके तत्व में विभाजित कर देते हैं। इसी प्रकार निबंध के भी मुख्यतः तीन प्रकार हैं :
प्रथम भाव प्रधान दूसरा विचार प्रधान और तीसरा वर्णन प्रधान। अर्थात भाव प्रधान विषय जैसे संबंध सुख-दुख प्रेम आदि से संबंधित होते हैं । विचारप्रधान निबंध जिसमें तर्क वितर्क बुद्धि या विचार समायोजित होता है। इसमें विज्ञान, इतिहास ,भूगोल और अनेक प्रकार के बौद्धिक निबंध हो सकते हैं। इसके अलावा इसमें दार्शनिक निबंध भी शामिल किए जा सकते हैं।
तीसरे प्रकार का निबंध है - वर्णन प्रधान । इनमें हम यात्रावृत्त, किसी का संस्मरण, घटना या प्रकृति चित्रण या किसी कथा पर आधारित निबंध को ले सकते हैं।
विषय पर आधारित निबंध अर्थात कितने प्रकार के निबंध हो सकते हैं ::
विषय पर आधारित
1.सामाजिक
2.राजनीतिक
3.सांस्कृतिक
4..धार्मिक
5.दार्शनिक
6.आर्थिक और
7.प्राकृतिक।
यह सब विभिन्न विषयों पर आधारित निबंध के प्रकार हैं।
अब हम बात करते हैं निबंध के अन्य प्रकार यानी निबंध के कई प्रकार और भी हैं निबंध का विस्तृत क्षेत्र है ।इसमें निबंध ही उनकी आत्मा है लेकिन उसके स्वरूप बदलते जाते हैं। थोड़ा परिवर्तन हो करके लेकिन आते हैं सभी निबंध की कोटि में। जैसे-- यात्रा वृत्त, संस्मरण, रेखाचित्र, रिपोर्ट ,जीवनी, परिचय ,डायरी लेखन, भाषण कला,, हास्य व्यंग्य आदि।
अब हम निबंधों की भाषा पर बात करेंगे
वैसे तो कोई भी विषय अपने आप में एक विशेष भाषा को खुद में ही समेटे होता है तथापि हम सुविधा के लिए यहां कुछ विभिन्न भाषा शैलियों का विश्लेषण करते हैं ,वर्णन करते हैं या उल्लेख करते हैं ।
1 काव्य भाषा या काव्यात्मकता इसके अंतर्गत निबंध में विभिन्न अलंकारों ,विभिन्न बिंबो और विभिन्न प्रकार के संकेतों , प्रतीकों की सहायता से निबंध को आगे बढ़ाते हैं । जैसे जयशंकर प्रसाद की गद्य भाषा।
2.आत्मकथा शैली इसके अंतर्गत निबंध या किसी भी विधा को लीजिए मैं शैली का प्रयोग किया जाता है और उनका विषय भी आत्मपरक होता है । खुद का ही वर्णन होता है या फिर अपने द्वारा अनुभव जो होते हैं उन पर वह निबंध या कोई अन्य विधा होती मैं शब्द का प्रयोग किया जाता है। इसको मैं शैली या आत्मकथा शैली कहते हैं।
3.प्रश्न शैली ,--खुद ही प्रश्न खड़े किए जाते हैं और खुद ही उनका सवाल दिया जाता है ,उनका जवाब दिया जाता है और कई बार निबंध के अंत में पाठकों के लिए लेखक संकेत के रूप में प्रश्न छोड़ देता है ।
4 समास शैली -
इसके अंतर्गत संक्षिप्त रूप से सांकेतिक रूप से भाषा को संश्लिष्ट संक्षिप्त करके लिखा जाता है । बाद में उसको व्याख्या करके समझा जा सकता है ।
5.व्यास शैली के अंतर्गत हम बात को उठाते हैं फिर उसको विस्तृत रूप देते हैं । कई ही बात को कई दोहराते हैं ताकि बात स्पष्ट हो जाए अपने विचार केआध्य से।
6.व्यंग्य शैली :
हम हम इसी बात को व्यंगपूर्ण तरीके से कहते हैं ,भले ही वह बात सरल और मधुर दिखाई दे लेकिन उसके अंदर एक व्यंग छिपा रहता है। कई बार खुद पर भी व्यंग्य करके दूसरों पर करना होता है और कई बार सीधे-सीधे भी व्यंग्य किया जाता है। एक बात को घुमा करके व्यंग किया जाता है। प्रतीकों के माध्यम से व्यंग भी किया जाता है तो यहां पर व्यंग्य शैली का प्रयोग होता है।
7.वर्णनात्मक ता शैली:
इसके अंतर्गत हम किसी स्थान का घटना का बिना किसी पात्र, संवाद के अन्य शैली का प्रयोग किए सीधे वर्णन करते चले जाते हैं। जैसे कथा पढ़ते हैं ,कहानी पढ़ते हैं।
8.चित्रात्मकता शैली:
बनता है कहां का वर्णन है कैसे वर्णन है चाहे ऐतिहासिक और सामाजिक संस्कृति को कोई भी हो सकता है या प्रकृति का चित्रण हो सकता है लेकिन हम सीधे-सीधे वर्णन करते चलते हैं यहां पर वर्णनात्मक शैली है। 9.संवाद शैली या नाटकीयता
इस शैली के अंतर्गत लेखक कभी पाठक से संवाद करता नजर आता है तो कभी निबंध के अंदर ही दूसरे पात्र से कहता हुआ नजर आता है और कभी अकेला ही संवाद करता है और खुद ही जवाब देता है।
यहां पर संवाद शैली होगी। यह शैली ज्यादातर नाटक और कहानियों में प्रयुक्त होती है ।
नाककिय की शैली कहीं-कहीं पर व्यंग या एक दूसरे के चरित्र को उद्घाटित करते हैं। इसका प्रयोग ज्यादातर कहानी और नाटकों में इसलिए इसका नाम नाट्य शैली है। इसमें चेस्टा मुद्राएं आदि का अधिक प्रयोग किया जाता है 10.विश्लेषण शैली -
हम किसी विषय को लेकर के उसकी विवेचना करते चलते हैं एक विषय को एक निबंध के अंदर एक एक विषय को लेते जाते हैं। उसका विस्तार उसका विश्लेषण करते जाते हैं। उस पर पूरा समझाते जाते हैं। वहां पर विश्लेषण शैली होती है।
11.चित्रात्मक शैली::
यह शैली है जिसमें वर्णन अधिक होता है लेकिन विशेष बात यह है कि इसमें दृश्य होते हैं। इसमें दृश्य वर्णन होता है , हम कहीं गए कहीं का वर्णन किया ,यह हमारे सामने चित्र प्रस्तुत हो जाता है जैसे कोई चलचित्र चल रहा है। ज्यादातर प्रसाद जी की के निबंधों में कहानियों में चित्रात्मक शैली का प्रयोग होता है।
प्रकृति चित्रण में यह शैली अधिक महत्वपूर्ण होती है ।
12.पांडित्य शैली:
इसके अंतर्गत दर्शन तत्व मौजूद होते हैं, कभी-कभी फिलॉस्फी यानी दार्शनिकता के दर्शन होते रहते हैं ।
एक शब्द को लेकर के दूर तक चले जाते हैं। मान लीजिए शून्य शब्द का प्रयोग किया तो लेखक कहेगा शून्य और कुछ भी नहीं है सिवाय मोक्ष के। सिवाय ब्रह्म के। आदि। यानी दूर तक चला जाता है लेखक। सुख पर बताने लगा तो सुख के बारे में बहुत दूर तक। दर्शन, आत्मा ,परमात्मा आदि तक पहुंच जाएगा इसी प्रकार से पांडित्य शैली में एक नवीनता एक दंता विचारशीलता या होती निमग्न हो जाता है वहां पर पांडित्य शैली है।
13.तुलनात्मक शैली:
इसके अन्तर्गत डॉ विषयों , व्यक्तियों, दो वातावरण, दो संस्कृतियों का तुलनात्मक विश्लेषण किया जाता है।
इस प्रकार संक्षिप्त रूप में हमने यहां पर निबंध के बारे में रखा निबंध की कोटियां या उसके प्रकार इसे ही स्पष्ट होते हैं ।उच्चकोटि के निबंधके लिए जरूरी नहीं कि सभी प्रकार की शैलियों को लेकर चले ।सभी प्रकार के तत्वों को या विभिन्न प्रकार के विषयों को लेकर चले ।एक ही विषय का निबंध एक ही प्रकार की भाषा शैली भी उच्च कोटि की हो सकती है।
यहां पर कुछ निबंध के तत्वों के बारे में हम जिक्र करेंगे।
तत्व ::
1.निबंध में विषय होता है।
2 .फिर प्रकार होता है
3. देशकल या वातावरण वर्णन
4.कोई भाषा शैली होती है ,
5.उद्देश्य
5.उपसंहार के रूप में निष्कर्ष होता है।
या फिर उपसंहार के रूप में लेखक संकेत छोड़ देता है, एक संदेश के रूप में एक उपहार के रूप में।
- डॉ चन्द्रदत्त शर्मा रोहतक हरियाणा।
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