ज्ञानी को अंतर का आधार रहा
सूरज की किरनों का आभार रहा
हर युग में वाणी का विस्तार हुआ
दुनिया में तेजोमय भंडार रहा
अनुवादक – कुमार अहमदाबादी
साहित्य की अपनी एक अलग दुनिया होती है। जहां जीवन की खट्टी मीठी तीखी फीकी सारी भावनाओं को शब्दों में पिरोकर पेश किया जाता है। भावनाओं को सुंदर मनमोहक मन लुभावन शब्दों में पिरोकर पेश करने के लिये लेखक के पास कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। दूसरी तरफ रचना पढ़कर उस का रसास्वादन करने के लिये पाठक के पास भी कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। इसीलिये मैंने ब्लॉग का नाम कल्पना लोक रखा है।
ज्ञानी को अंतर का आधार रहा
सूरज की किरनों का आभार रहा
हर युग में वाणी का विस्तार हुआ
दुनिया में तेजोमय भंडार रहा
अनुवादक – कुमार अहमदाबादी
मदिरा से चकचूर हृदय की है मांग
साकी से मदमस्त प्रणय की है मांग
हर दिल को माशूक कहे ये दिन रात
होने दो संगम ये समय की है मांग
कुमार अहमदाबादी
*सूरज की रोशनी उदय से समझो*
*संसार करे याद विनय से समझो*
*अनजान प्रकाश से दिशाएं चमकी*
*घटना है दिन रात समय से समझो**
अनुवादक – कुमार अहमदाबादी*
मानवता का दृष्टिकोण कहता है
तुम इंसान नहीं हो
क्यों कि,
तुमने आंसुओं की मजबूरी
आंखों की बेबसी, इंसान की लाचारी
और दिल की तड़प को
कभी समझा ही नहीं
समझने की बात तो दूर रही
कभी समझने का प्रयास भी नहीं किया
प्रयास भी किया होता तो शायद.......
कुमार अहमदाबादी
वो पत्र पहला पत्र था
जिस ने पत्रों का महत्व बताया था
वो पत्र जो कोमल उंगलियों ने
थरथराते हुए मुझे दिया था
जब उंगलियां पत्र थमा रही थी
उसकी आंखें ये कहकर झुक गई थी कि
इसे पढ़ना जरूर
जब मैं पत्र थाम रहा था तब पत्र देनेवाली उंगलियों से
मेरी उंगलियों ने अनजाने में स्पर्श कर लिया था
तब वो छुईमुई के पौधे सी सिकुड़ गई थी
ठीक से पत्र थमा भी न पाई थी
हालांकि मैंने वो पत्र पढ़ा था
पढ़ने का बाद विश्व बदल भी गया था
मगर सच कहूं तो
वो पत्र पढ़ने की जरूरत थी ही नहीं
पत्र में जो कुछ भी लिखा था
कमलनयनी आंखों ने पहले ही कह दिया था।
*कुमार अहमदाबादी*
गुलाब सा गुलाबी औ’ कमल सा पवित्र
वो सोलहवां साल आज बहुत याद आ रहा है
ना बचपन था ना जवानी थी मगर धड़कनें किसी की दीवानी थी
दीवानी थी एक कली की जो फूल बनने की ड्योढी पर खड़ी थी
दीवाने को देखकर उस की आंख शर्माकर झुक जाती थी
मगर, झुकते झुकते भी बहुत कुछ कह जाती थी
वो कह देती थी वो सब बातें जो कहते हुए
जुबान लड़खड़ा सकती थी थर्रा भी सकती थी
या कहने से ही कतरा सकती थी मगर आंख
शर्मीली होकर भी नीडर थी बहादुर थी
वो सोलहवां साल जब जीवन से
परिचय होने की क्रिया शुरू हो रही थी
तब, जिसने
जीवन के सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्यक्ति से मुलाकात करवाई थी
और जीवन का सर्वाधिक मीठा दर्द भी दिया था
इतना महत्वपूर्ण की, उस दर्द ने हमेशा उस समय भी साथ दिया
जब समय भी साथ छोड़कर चला गया था
तब भी उस दर्द ने एक विश्वसनीय दोस्त बनकर साथ निभाया था निभा रहा है
क्यों? क्यों कि वो सोलहवें साल वाला दर्द है
और, आज भी देख लो वही दर्द इस कलम को चलने के लिए प्रेरित कर रहा है।
*कुमार अहमदाबादी*
मुझे याद है वे तमाम पल जो तेरे दामन में बिताये थे
तुम ही कहो कैसे भूल सकता हूँ मैं भी कभी रईस था
कुमार अहमदाबादी
मित्रोँ, आज मुक्तक पेश करता हूँ।
मैच के बारे में बतानेवाले ज्योतिषियों की बातों ने सिद्ध कर दिया। चैनल पर बैठकर भारत की जीत का दावा करनेवाले सारे ज्योतिषी अपनी अपनी विद्या में ठोठ हैं; डफोळ हैं।
लेकिन इस का अर्थ ये नहीं की ज्योतिष शास्त्र गलत है या बकवास है।
जैसे पढ़ाई में कोई विद्यार्थी होशियार और कोई ठोठ होता है।
जैसे जड़ाई का काम करनेवालों के कुछ बहुत बेहतरीन कारीगर और कुछ एकदम रद्दी काम करनेवाले होते हैं।
जैसे खाना पकानेवाली गृहिणियों और रसोइयों में कुछ बहुत ही स्वादिष्ट और लाजवाब खाना पकाते है; जब की कुछ मामूली और कुछ एकदम बेकार खाना पकाते हैं।
उसी तरह ज्योतिष शास्त्र के अध्ययन और फलादेश करने में भी कोई ज्योतिषी कुशल और सचोट होते है। जब की कुछ एकदम ठोठ होते हैं। उन की गणनाएं गलत होती रहती है। बल्कि ज्योतिष इतना गहन ज्ञान है कि ज्यादातर ज्योतिषी ठोठ ही होते हैं।
कुमार अहमदाबादी
आप भी चलिए संग मेरे मधुशाला में
शब्द दोनों के निखरेंगे मधुशाला में
मधु का असर जब होगा मस्तिष्क पर
मधुधारा अविरत बहेगी मधुशाला में
कुमार अहमदाबादी
द्वेष का हलाहल है प्रेम की कटोरी है
विश्व तेरी ये हरकत एकदम छिछोरी है
बोझ वासना का है सांस के भरोसे पर
कौन ये कहे मन को टूटी प्रेम डोरी है
कुमार अहमदाबादी
जन्मो जन्मों की अभिलाषा हो तुम सतरंगी जीवन की आशा हो तुम थोडा पाती हो ज्यादा देती हो दैवी ताकत की परिभाषा हो तुम कुमार अहमदाबादी