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शुक्रवार, सितंबर 8

हमारी आस्थाएं और विश्वास (भाग -01)

लेखक - श्री विमल सोनी

गिराणी सोनारों की गवाड़

बीकानेर - 334001

बीकानेर का हमारा ब्राह्मण स्वर्णकार समाज स्थानीय अन्य जातियों की भांति अपने कर्म के प्रति आस्थावान है और अनेक मान्यताओं में विश्वास रखता है। इस की झलक हमें त्यौहारों, व्रतों, मेलों और कतिपय किवदंतीयों में देखने को मिलती है।

स्वर्ण-कर्म से संबंधित होने के कारण प्रत्येक घर में अंगीठा या भट्ठी मिलेगी ही मिलेगी। अनेक लोग इसे धुने के रूप में मानते हैं। इस की नित्य प्रति जल छिड़क कर अगरबत्ती से पूजा करते हैं। प्रतीक रुप में अग्नि तत्व का सतत सानिध्य इस जाति को प्राप्त है। इस कारण यहां भारद्वाज गोत्र की अधिकता पाई जाती है। इस गोत्र का वेद यजुर्वेद है और उपवेद धनुर्वेद है। ग्रह मंगल है जो अग्नि बहुल है और उपास्य देव है राम। 

स्वर्ण को वेद में हिरण्य कहा गया है। इस का अर्थ है 'हितं च रमणीयं च' यानि जो हितकर और सुन्दर दोनों ही है। इस प्रकार हिरण्य कर्म से जुड़े होने के कारण हमारी जाति में सौंदर्योपासना कारीगरी के प्रति रुझान और अनेक कलाओं में दक्षता पाई जाती है। .

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स्वर्ण लेखा से साभार

1986 में बीकानेर में आयोजित ब्राह्मण स्वर्णकार सम्मेलन, जो की श्री अखिल भारतीय ब्राह्मण स्वर्णकार सभा के तत्वावधान में ता.13 से 15 सितंबर 1986 के दौरान हुआ था। तब ये स्वर्ण लेखा स्मारिका छपी थी।

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