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बुधवार, जून 26

पूछ कर दो चार को(ग़ज़ल)


पूछ कर दो चार को

जान लूंगा सार को


घर से ऊंँची हो गयी

तोड इस दीवार को


प्यार का भूखा है ये

दे दवा बीमार को


प्रेम पूर्वक प्रेम से

भोग इस संसार को


चौगुनी रफ्तार से

अब बढ़ा व्यापार को


तू भी होगा वृद्ध कल

मत सता लाचार को


त्रस्त है सारी प्रजा दो

ख़बर सरकार को


ये भरा है क्रोध से

छेड़ मत बेकार को


भर न पाया किस्त तो

ले गये वो कार को


गौर से सुन वाद्य के

कर्ण प्रिय झंकार को


भूल मत ये मंच है

 याद रख किरदार को


देख जूते खाएगा

छीन मत आहार को

    

कुंद क्यों होने दी क्यों?

तेज कर इस धार को


घोटना है उम्र भर

शब्द के आकार को


भाग मत एसे ‘कुमार’

त्याग मत संसार को

कुमार अहमदाबादी

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चिता सजानी है मुझे (रुबाई)

  सीने की आग अब दिखानी है मुझे घावों में आग भी लगानी है मुझे जीवन से तंग आ गया हूं यारों अब अपनी ही चिता सजानी है मुझे कुमार अहमदाबादी