Translate

रविवार, जून 16

अपनापन (जीवन में एक स्त्री सफल एक निष्फल)

*अपनापन*

जीवन में एक स्त्री सफल एक निष्फल

१९७७ में मैंने अखबार में अपनापन मूवी का विज्ञापन देखा था। उसी सप्ताह में पापा मम्मी के साथ मूवी देखी। आज मैं जानता हूं। उस विज्ञापन की *एक सफल एक निष्फल* वाली पंच लाइन ने मेरे जीवन पर कितना गहरा असर छोड़ा है। 

आज अपनापन की बात इसलिये कर रहा हूं कि कल फिर मैंने ये मूवी देखी। 

अपनापन सिर्फ मूवी नहीं है। जीवन जीने का एक मंत्र है, एक सिद्धांत है, एक मार्गदर्शन है। जीवन का एक पाठ है।

अपनापन तीन मुख्य किरदारों की कहानी है। जिन में एक पुरुष है व दो स्त्रियां हैं। लेकिन ये प्रणय त्रिकोण की कहानी नहीं है। ये कहानी अनिल(जितेन्द्र) राधिका(सुलक्षणा पंडित) और कामिनी की कहानी है। 

अनिल की मुलाकात राधिका से होती है। दोनों प्यार करने लगते हैं; शादी करना चाहते हैं। लेकिन अनिल राधिका को बताता है कि वो न सिर्फ तलाकशुदा है, बल्कि उस का एक लडका भी है। जो बोर्डिंग स्कूल में पढ़ता है। सच जानकर राधिका फैसला नहीं बदलती। दोनों शादी कर लेते हैं। 

शादी के बाद दोनों हनीमून के लिये व बेटे से मिलने के लिये कश्मीर जाते हैं। 

कश्मीर में उन की मुलाकात कामिनी से होती है। चूंकि राधिका के चेहरे से परिचित नहीं थी। वो उसे नहीं पहचानती। कामिनी अनिल से अलग होने के बाद एक प्रौढ धनपति से शादी कर लेती है। लेकिन मां नहीं बनती। 

कश्मीर में एक के बाद एक रोचक घटनाएं घटती है। जो कहानी को आगे बढाने के साथ साथ जीवन जीने के पाठ भी पढ़ाती है। जो जीवन में पति पत्नि के आपसी तालमेल, सूझबूझ, सामंजस्य, समर्पण के महत्व को समझाती है। 

मूवी में ज्यादा गीत नहीं है। दो चार ही है। लेकिन एक गीत *आदमी मुसाफिर है, आता है जाता है, आते जाते रस्ते में यादें छोड़ जाता है* बहुत ही फिलोसॉफिकल मधुर शिक्षाप्रद है। वो गीत मूवी की जान है। मूवी में वो कई जगह बजता है। जब भी बजता है। कोई न कोई सीख देता है। मूवी के अंत में भी यही गीत बजता है और मन पर बहुत गहरी छाप छोड़ जाता है।

अंत में जो अंतरा बजता है। उस के शब्द हैं 

रोती है आंखें जलता है दिल, जब अपने घर के फेंके दिये से आंगन पराया जगमगाता है…

कुमार अहमदाबादी 





 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

बेमौसम बरसात (रुबाई)

जब जब होती है बेमौसम बरसात  शोले बन जाते हैं मीठे हालात  कहती है बरसात आओ तुम भीगो हौले हौले फिर भीगेंगे जज़बात  कुमार अहमदाबादी